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________________ २० : श्रमण/अप्रैल-जून/१९९६ ५. पंडितजन स्वाधीन सुख का त्याग नहीं करते। ( पृ० १९ ) ६. लोक धर्म को अनुवर्ती पति को अपनी पत्नियों का भरण पोषण करना चाहिए। ( पृ० २६ ) ७. परिपक्व वय में धर्मान्तरण करने वाले निन्दित नहीं होते । ( पृ० १९ ) ८. पंडित पुरुष सत्पात्रों में अर्थ वितरण की प्रशंसा करते हैं। (पृ० ३२) ९. पुत्र की श्रद्धा से माता-पिता की तृप्ति होती है। (पृ० ३५) १०. सिद्धि सुख निरुपम और निर्बाध है। (पृ० ३९) ११. ज्योतिर्मयी स्त्री को उल्का के समान, पुष्पलता जैसी को साँपिन के समान जानकर जो त्याग करता है वह पण्डित है। (पृ० ३१४) १२. सज्जन का वचन निष्ठुर नहीं होता, श्रेष्ठ कमल दुर्गन्धी नहीं होता, युवती के हृदय में धैर्य नहीं होता, नृपतियों का स्थिर रहना शोभा नहीं देता। (पृ० ३१४) १३. बुद्धिमान व्यक्ति के लिए शोक विष के समान त्याज्य है। (पृ० ९८३) १४. भावी का उल्लंघन नहीं किया जा सकता। (पृ० ९८६) १५. अपने से अधिक बलशाली व्यक्ति को विशेष अस्त्र मायाचार से मार देना चाहिए। (पृ० १२६) १६. युद्ध में प्रवृत्त रहकर महिला का मुँह देखने वाला हार का भागी बनता है। (पृ० १२७) १७. व्यसनी धन का नाश कर देता है। (पृ० ४३३) १८. श्रेष्ठ पुरुष को वरण करने वाली स्त्री हीन कुल-जाति की होकर भी लोक में सम्मान पाती है। (पृ० ७०६) १९. अतीत की बातों को न सोचकर भविष्य पर ध्यान देना चाहिए। (पृ० १२२) २०. ऐसा कोई स्थान नहीं जो अनित्यता के लिए उल्लंघनीय हो। (पृ० ७२६) २१. ज्ञानी पुरुष गंगा की लहरों को गिन सकते हैं, हिमालय की ऊँचाई नाप सकते हैं, किन्तु स्त्रियों के हृदय को नहीं जान सकते। (पृ० १३८) २२. स्त्रियाँ इस लोक और परलोक दोनों में दुःख का कारण हैं। (पृ० १३४) २३. भविष्य का लाभ असंदिग्ध हो तो वर्तमान को नहीं छोड़ा जाता। (पृ. ४०) २४. जब तक शरीर स्वस्थ है तब तक परलोक हित का कार्य कर लेना चाहिए। (पृ० ६३) २५. गणिका का हृदय क्षणिक रमणीय होता है। (पृ० ९३) २६. जिसने दुःख का अनुभव नहीं किया, जो न दुःख-निवारण में समर्थ है, और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525026
Book TitleSramana 1996 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1996
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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