SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 18
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रमण/अप्रैल-जून/१९९६ : १७ सोमश्री और सुहरण्या का चरित्र बृहत्कथा श्लोकसंग्रह की मदनमंतुका के चरित्र से मेल खाता है। विष्णु कुमार की कथा हरिवंश पुराण, बृहत्कथा श्लोकसंग्रह, हरिषेण की बृहत्कथाकोष, गुणभद्र के उत्तरपुराण, नेमिचन्द्र की उत्तराध्ययन टीका, हेमचन्द्र के त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र और जिनसेन के आदिपुराण में भी है। वल्कलचीरी और कोक्कास बढ़ई की कथा आवश्यकचूर्णि में भी है। मधुबिंदु का दृष्टान्त समराइच्चकहा, धर्मपरीक्षा, आवश्यकचूर्णि और हेमचन्द्र की स्थविरावली में भी है। हाथी जैन मुनि का उपदेश सुनकर संवेग को प्राप्त हो गया, कर्दम में फँस जाने पर भी वह यावज्जीवन आहार त्याग कर देता है। यह कथा मरणसमाधि प्रकीर्णक और हरिषेण के बृहत्कथाकोष में भी पाई जाती है। समराइच्चकहा के कथानक का आधार वसुदेवहिंडी में आई कंस के पूर्व जन्म की कथा है जिसमें एक तपस्वी मास खमन के पारणा के लिये राजा के घर जाता है पर स्मृतिदोष के कारण राजा आहार नहीं देता है और क्रोधित तपस्वी अगले जन्म में बदला लेने का निदान करता है। जम्बूचरित का और अगडदत्त चरित का मूलस्त्रोत भी इसी कथा ग्रंथ में है। - वसुदेवहिंडी में कई कथानक रूढ़ियों का प्रयोग किया गया है जिससे कथा के कलेवर को विस्तार मिला है। मुनि का आगमन होने पर अपने प्रश्नों का समाधान करना, गुणश्रवण, चित्रदर्शन तथा प्रथम दर्शन से नायक-नायिका में प्रेम हो जाना, धन से परिपूर्ण जहाज का डूब जाना, अन्य विपदाओं का आना, दोहद की इच्छा, पूर्वजन्म का संस्मरण, पूर्वजन्म के उपकार का बदला चुकाना, तपस्वी का शाप, जैनमुनि से पूर्वभव सुनकर विरक्त होना, विलीन होते हुये मेघ देखना, कनपटियों पर सफेद बाल देखना, अवधिज्ञानी मुनि के द्वारा आयु की समाप्ति जानकर मुनिदीक्षा ग्रहण करना, जैन मुनि के उपदेश सुनकर वैभव-त्याग, शिशु को मंजूषा में बंद करके प्रवाहित कर देना, पुण्य फलस्वरूप सब कलाओं की प्राप्ति, चारणमुनि या केवली से कन्या का भविष्य पूछना, मुनि के द्वारा वर की भविष्यवाणी करना, उस वर की प्राप्ति के लिये प्रयत्नशील होना आदि इस कथानक के कलेवर में समाहित हैं। इस कथानक रूढ़ि का वसुदेवहिंडी में सबसे अधिक प्रयोग हुआ है जिसमें मरणासन्न पशु पक्षी का नवकार मंत्र सुनकर स्वर्ग में जाना, स्वमित्र के प्रबोधनार्थ स्वर्ग के देवता का मध्यलोक तथा अधोलोक में जाना, मुनिदर्शन से जाति स्मरण ज्ञान होना, विधिवत साधना से रोगों का नष्ट होना, स्वप्नों द्वारा शुभाशुभ संकेत, अपने कुकृत्यों की आलोचना से पाप मुक्ति आदि कथानक रूढ़ियाँ मुख्य हैं। आचार्य संघदासगणि ने विविध आध्यात्मिक भावों की प्रतीकों के माध्यम से सहज अभिव्यक्ति की है। प्रतीकों के माध्यम से उन्होनें जनसामान्य को धर्म के सिद्धान्तों की ओर आकर्षित किया है। वन में सार्थ के साथ गमन करते हुए, वणिक के काकनियों के बोरे के कट जाने पर निर्जन वन में सार्थ का साथ छोड़कर काकनियों को इकट्ठे करने में प्रवृत्त हो जाना और चोर लुटेरों के द्वारा लुट जाने वाले वणिक की तुलना विषयसुख Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525026
Book TitleSramana 1996 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1996
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy