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________________ १६ : श्रमण/अप्रैल-जून/१९९६ जहाँ कोई भी न हो। पर्वतक ने एक निर्जन स्थान देखकर बकरे का वध कर दिया पर नारद और वसु ने बकरे का वध नहीं किया क्योंकि उनके विचार में भगवान् की दृष्टि से कुछ भी ओझल नहीं है। आचार्य समझ गये कि उनका पुत्र नरकवासी होगा। उपाध्याय की मृत्यु हो गई। कालक्रम में वसु राजा बना। एक बार नारद और पर्वतक के बीच शास्त्रार्थ हुआ। 'अजेहिं जटियत्वं' का अर्थ पर्वतक ने 'बकरा' और नारद ने 'तीन वर्ष पुराना धान' किया। पुत्र की जीत की आशा करने वाली गुरुपत्नी का मन रखने के लिए वसु ने भी पर्वतक का साथ दिया। तभी से हिंसावादी यज्ञों का प्रचलन हुआ।१६ मध्यम खंड में कनकवती लम्ब में नल-दमयन्ती के कथानक का उल्लेख हुआ है। नल अपने भाई कुबेर से जुए में हारकर पत्नी के साथ जंगलों में निकल जाता है। पत्नी को मार्गजन्य विपत्तियों से बचाने के लिये एक पत्र पर उसके पिता का पता लिखकर नल पत्नी को जंगल में सोती हुई छोड़ कर चला जाता है। दमयंती जागने पर नल को न पाकर विलाप करती है। एक सार्थवाह के साथ कई स्थानों पर होती हुई अपने पिता के पास पहुँच जाती है। उधर नल कुबड़े के परिवर्तित रूप में एक राजा के यहाँ सारथी के रूप में नौकरी करता है। नल को ढूँढने के लिये दमयंती के स्वयंवर की घोषणा की जाती है। समय इतना कम रखा जाता है कि उतने कम समय में नल जैसा कुशल सारथी ही पहुंच सकता है। दोनों का मिलन होता है। नल दैवीय पासों से कुबेर को भी जीत लेता है। इस प्रकार वर्षों तक राज्य को भोगते हुए अन्त में नल और दमयन्ती श्रमण दीक्षा ले लेते हैं।१७ वसुदेवहिंडी गुणाढ्य की बृहत्कथा का परिवर्तित रूप माना जाता है। किंवदंती है कि गुणाढ्य ने सात लाख श्लोकों से युक्त बृहत्कथा का निर्माण किया और सातवाहन की सभा में प्रस्तुत किया, किन्तु उन्हें विशेष प्रोत्साहन नहीं मिला। गुस्से में आकर गुणाढ्य ने छ: लाख श्लोकों को नष्ट कर दिया। बाकी के एक लाख श्लोकों का सातवाहन ने संरक्षण किया। वह रचना इतनी सरस, शृंगारिक और विस्तृत थी कि परवर्ती रचनाकारों में बहुत लोकप्रिय हो गयी। वह संघदासगणि की वसुदेवहिंडी, बुधस्वामी की बृहत्कथा श्लोकसंग्रह, सोमदेव भट्ट की कथासरित्सागर और क्षेमेन्द्र की बृहत्कथामंजरी की आधारोपजीव्य बन गई। वसुदेवहिंडी में बृहत्कथा की परम्परा का ही नव्योद्भावन हुआ है। आचार्य देवन्द्रमुनि जी वसुदेवहिंडी को जैन प्राकृत साहित्य का उपजीव्य कहा है। जैन रचनाकार वसुदेवहिंडी से विशेषकर प्रभावित थे। इसके छोटे-छोटे कथानकों को कथा सूत्र मानकर उत्तरकाल में प्राकृत, संस्कृत और अपभ्रंश के अनेक कथाग्रंथों का विकास हुआ। वसुदेवहिंडी में आए चारुदत्त और गणिका का कथानक मृच्छकटिक के चारुदत्त और वसन्तसेना कथानक से साम्यता रखता है। चारुदत्त का कथानक जिनसेन के हरिवंशपुराण, समराइच्चकहा, कुवलयमाला, बृहत्कथा श्लोकसंग्रह, हरिषेण की बृहत्कथाकोष के व्यापारियों की कथाओं से काफी साम्यता रखता है। वसुदेवहिंडी की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525026
Book TitleSramana 1996 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1996
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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