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________________ १४ : श्रमण/अप्रैल-जून/१९९६ आकाशवाणी होना कि वह ऋषिदत्ता का पुत्र है, राजा का तापसवन में जाना, याद आना, तापस कन्या से विवाह करना, कन्या को गर्भ रह जाना, राजा का शीघ्र बुला लेने का आश्वासन देना, वापस आकर राज्यकार्य में व्यस्त हो जाना आदि प्रकरण कालिदास के 'अभिज्ञान शाकुन्तलम्' से काफी साम्य रखते हैं। मानसवेग के प्रमदवन में रहते हुए सोमश्री का यह प्रण करना कि जब तक वह मानसवेग के फड़फड़ाते हुए अंगों से ताजा बहता हुआ खून नहीं देखेगी उसे शान्ति नहीं मिलेगी। महाभारत में चीरहरण के बाद द्रौपदी का प्रण करना कि जब तक वह दुःशासन की जंघा के रक्त से अपने बाल नहीं धोयेगी तब तक वह चोटी नहीं बाँधेगी, महाभारत कथा से काफी साम्य रखता है। इसी प्रकार कृष्ण जन्म की कथा के बारे में कहा गया है कि देवकी की शादी में कंस की पत्नी जीवयशा उन्मुक्त होकर नाच रही थी तो अतिमुक्तक ऋषि ने उसको चेतावनी दी की जिसकी शादी में प्रमुदित होकर नाच रही हो उसी का सातवाँ पुत्र तुम्हारे पति का वध करेगा। इसी कारण कंस ने उसकी सब सन्तानों को वसुदेव से माँग लिया था। कंस ने उसकी छ: सन्तानों को तो मार दिया, सातवीं को वसुदेव ने दिव्यशक्ति के सहारे यशोदा की कन्या से बदल दिया। हिन्दू पुराणों में भी कंस द्वारा देवकी और वसुदेव को कारागृह में बंद रखकर छः सन्तानों को मार देने का उल्लेख है। सातवीं सन्तान को वसुदेव ने नंद और यशोदा की कन्या से बदल कर रक्षा की थी। कंस के जन्म की कथा के सन्दर्भ में कहा गया है कि कंस को पता चल गया था कि उसके पिता उग्रसेन ने उसे अशुभ जानकर काष्ठ मंजूषा में रखकर नदी में बहा दिया था। उसने प्रजाओं को प्रसन करके स्वामित्व तथा बदले की भावना से अपने पिता उग्रसेन को राज्यच्युत करके बंदी बना दिया। वैदिक परम्परा में बताया गया है कि कंस बचपन से दुष्ट और क्रूर था, उसने बड़ा होते ही अपने पिता को कैद करके राजगद्दी पर अधिकार कर लिया तथा अपनी बहन और उसके पति को कारागृह में डाल दिया। जैन परम्परा में विष्णु कुमार मुनि की कथा कहते हुए कहा गया है कि महापदम का नमचि पुरोहित एक बार जैन श्रमणों से शास्त्रार्थ में हार गया। अपनी हार का बदला लेने के लिए जब राज्य सत्ता उसके अधिकार में आई तो उसने जैन मुनियों को सात दिन में राज्य से बाहर जाने का आदेश दे दिया। उन दिनों चौमास चल रहा था, चौमास में जैनमुनि यात्रा नहीं करते। मुनियों ने कहा शरद ऋतु में वह चले जायेंगे, नमुचि ने कहा अगर वे सात दिन से अधिक रहेंगे तो वध्य माने जायेंगे। संघ पर संकट आया जान विष्णुमुनि आकाश मार्ग से आये, उन्होंने पुरोहित को बहुत समझाया पर पुरोहित अपनी जिद से टस से मस नहीं हुआ, तब विष्णुकुमार ने उससे तीन पग भूमि माँगी ताकि साधु उस पर अपना शरीर त्याग कर सकें। नमुचि मान गया, भूमि नापने के लिए विष्णु कुमार ने अपना शरीर इतना विराट कर लिया कि एक पैर मन्दराचल के शिखर पर रखा। दूसरा कदम उठाया तो सारा विश्व काँपने लगा। देवता लोग एकत्रित हो गये, उनके प्रार्थना करने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525026
Book TitleSramana 1996 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1996
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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