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________________ भमण जैन-जगत् जैनाचार्य जयंतसेनसूरिजी फाउण्डेशन ट्रस्ट द्वारा राष्ट्रपति ‘अनेकान्तरत्न' की उपाधि से अलंकृत 'अनेकान्तवाद' दर्शन के अनुसरण से विश्व की समस्याओं का समाधान : राष्ट्रपति “मैं बचपन से जैन धर्म के अनेकान्तवाद एवं अहिंसा की धारा से आकर्षित रहा हूँ। जीवन प्रत्येक उदार दृष्टिकोण से एवं सत्य अनेक दृष्टिकोणों से देखा जा सकता है, ऐसा मैंने बचपन से जाना है।'' यह उद्बोधन राष्ट्रपति शंकरदयाल शर्मा ने आचार्य श्री जयन्तसेनसूरिजी फाउण्डेशन ट्रस्ट से 'अनेकान्तरत्न' की उपाधि स्वीकार करते वक्त कहा। मुम्बई के बिरला मातुश्री सभागृह में 'अनेकान्तरत्न' की उपाधि स्वीकार करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि विश्व के प्रत्येक धर्म ने सत्य की व्याख्या अपने-अपने ढंग से की है। व्याख्या भले ही अलग-अलग हो परन्तु सांस्कृतिक मूल्यों के सन्दर्भ में देखें तो सबका अर्थ एक ही होता है। इस अवसर पर महाराष्ट्र के राज्यपाल डॉ० पी० सी० अलेक्जेण्डर ने कहा कि अहिंसा और मानवता प्रत्येक धर्म में है, परन्तु जैन धर्म में अहिंसा दूसरे धर्मों की अपेक्षा अधिक व्यापक है। भगवान् महावीर ने जीवमात्र के प्रति अहिंसा की भावना का उपदेश दिया था। __इस अवसर पर आचार्यश्री जयंतसेनसूरिजी ने कहा कि आचार में अहिंसा और विचार में अनेकान्तवाद रखना जैन धर्म का सिद्धान्त है। जहाँ आग्रह है वहाँ दुराग्रह, विग्रह और कदाग्रह है, परन्तु जहाँ अनेकान्तवाद है वहाँ आग्रह का स्थान नहीं। यही जैन धर्म का उपदेश आज समस्त विश्व को है। महाराष्ट्र के प्रधान प्रमोद नवलकर ने कहा कि जैन अनुयायी संख्या में कम हैं परन्तु जीवन जीने की शैली में विश्व में व भारत में इनका प्रमुख स्थान है। संघवी गगलदास हालचंद भाई ने राष्ट्रपति को 'अनेकान्तरत्न' की उपाधि की तस्वीर अर्पित की। श्री सेवंतीलाल मोरखीया द्वारा १ लाख ११ हजार १ सौ ११ रुपये का चेक दिया गया। राष्ट्रपति ने यह रकम शास्त्रीय चिकित्सा महाविद्यालय, भोपाल के विकासार्थ दान में दे दी। इस अवसर पर जैन समुदाय के अग्रणी श्री दीपचन्द गार्डी, चैतन्य काश्यप मफतकाका, मंगल प्रभात लोढ़ा, सुरेन्द्रभाई पारेख, वाडीलाल गगलदास, चन्द्रकांत भुदरमल, चंदूलाल छोटेलाल आदि उपस्थित थे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525026
Book TitleSramana 1996 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1996
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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