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________________ श्रमण/अप्रैल-जून/१९९६ : ९ उद्भावक कात्यायन मुनि हैं और हेमचन्द्र अपने उक्त नियम में कात्यायन की दाय ग्रहण करते हैं। अस्तु, अपने सरलता के सिद्धान्त के अनुरोध से हेमचन्द्र ने धातु प्रक्रिया में पाणिनीय लकार का सर्वथा परित्याग कर कातन्त्र प्रक्रिया की काल-अवस्थाओं को स्वीकार किया है। ये काल-अवस्थाएँ पाणिनि के दस लकारों की भाँति संख्या में दस ही हैं - वर्तमाना, सप्तमी, पञ्चमी, ह्यस्तनी, अद्यतनी, परोक्षा, आशीश्वस्तनी, भविष्यन्ती और क्रियातिपत्तिा२२ वस्तुत: हेम ने उपलब्ध व्याकरण पद्धतियों के जिस प्रकरण को सरल बोधगम्य पाया, उसी प्रक्रिया को नि:संकोच रूप से अपने शब्दानुशासन में स्थान दिया। अतएव, उपर्युक्त परीक्षण के आलोक में हम स्वाभाविक रूप से यह राय बना सकते हैं कि संस्कृत व्याकरण के सरलीकरण की दिशा में हेमचन्द्र के शब्दानुशासन का अध्ययन अत्यन्त उपयोगी है। पाणिनीय व्याकरण की तकनीकी जटिलताएँ हेम के साँचे में ढलकर अत्यन्त सहज एवं सुबोधगम्य हो जाती हैं। सन्दर्भ १. द्रष्टव्य, अष्टाध्यायी - लोप: शाकल्यस्य'। ८/३/१९, एवं अवङ् स्फोटायनस्य। ६/१/१२३ २. 'तात वाग्भट! मा रोदीः कर्मणां गतिरीदृशी । दुष् धातोरिवास्माकं गुणो दोषाय केवलम् ।। द्रष्टव्य : काव्यप्रकाश, आचार्य विश्वेश्वर, भूमिका, पृ० ८१ ३. अङ्गीकरोति यः काव्यं शब्दार्थावनलङ्कृती । असौ न मन्यते कस्मादनुष्णमनलं कृती ।। - जयदेव, चन्द्रालोक १८ ४. आचार्य हेमचन्द्र और उनका शब्दानुशासन : एक अध्ययन - डॉ० नेमिचन्द्र शास्त्री, पृ० ९। ५. शब्दानुशासन, १/४/३२ ६. अष्टाध्यायी, ७/१/५२ ७. शब्दानुशासन, १/४/१५ ८. अष्टाध्यायी, ६/४/१३१ ९. शब्दानुशासन, २/१/१०५ १०. अष्टाध्यायी, ६/१/७८ ११. शब्दानुशासन, १/२/२३ १२. वही, १/२/२४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525026
Book TitleSramana 1996 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1996
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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