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________________ श्रमण 'श्रमण' पाठकों की नज़र में - श्रमण का अक्टूबर-दिसम्बर, १९९५ का अंक मिला। धन्यवाद। पहले के अंकों से इसमें जो संशोधन (शीर्षक आदि के बारे में) किया गया है वह अति प्रशंसनीय है। -के० आर० चन्द्र भूतपूर्व अध्यक्ष, प्राकृत विभाग गुजरात विश्वविद्यालय, अहमदाबाद श्रमण का अंक मिला। इसके पूर्व भी तीन अंक प्राप्त हुए हैं। तदर्थ धन्यवाद। शोध-पत्रिकाओं में 'श्रमण' अग्रगण्य है। नववर्ष की शुभकामनाएँ। - भागचन्द जैन आचार्य नागपुर विश्वद्यिालय, नागपुर (महाराष्ट्र) 'श्रमण', वर्ष ४६, अंक १०-१२ मिला। उत्कृष्ट लेखों के संकलन हेतु आपके प्रयास के लिए बधाई। मुझे सर्वदा देवर्धिगणि का लोकोत्तर आत्म निन्हव 'ज्ञानाय, दानाय च रक्षणाय' याद आता है और तथोक्त आधुनिक शोधकों की 'अनुप्रासस्यलोभेनभूपः कूपे निपाततः' वृत्ति, क्योंकि वे बहुधा मौलिकता के लिए 'विवादाय' में रस लेते हैं और 'स्थितस्य गतिः' मूल पर विचारणीया को भूलकर मुल पर भी आघात होने देते हैं, जब कि यह अवसर्पिणी है, का ध्यान 'आज्ञापाय विचयी' सहज करता है। - खुशालचन्द गोरावाला वाराणसी सम्पादक 'श्रमण', ___ 'श्रमण', अक्टूबर-दिसम्बर, ९५ का अंक प्राप्त हुआ। पत्रिका में मेरे द्वारा सम्पादित, अनुवादित और लिखित पुस्तकों की समीक्षा तथा चम्पालाल साँड स्मृति साहित्य पुरस्कार से मुझे पुरस्कृत किये जाने के जो समाचार प्रकाशित हुये हैं, उससे मुझे प्रमोद हुआ है। इस हेतु आभार। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525025
Book TitleSramana 1996 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1996
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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