________________
जैन दर्शन में पुरुषार्थ चतुष्टय : ४३
९. वहीं, पृ० १७१ १०. आयारो, पृ० ८८ (२. ९५) ११. देखें, मीमांसासूत्र (१. १) जिसमें धर्म की परिभाषा, 'चोदनालक्षणोऽर्थो
धर्मः' दी गई है। इसका तात्पर्य यही है कि धर्म का अर्थ उसके प्रेरणा देने के
लक्षण में निहित है। १२. आयारो, पृ० २३८ (६. २. ४८) १३. देखें, समणी स्थितप्रज्ञा का निबन्ध, 'संबोधि के आगमिक स्रोत', तुलसी
प्रज्ञा, पूर्णांक ९०, पृ० १३५ ।। १४. स्वामिकार्तिकेयानुप्रेक्षा, स्वामी कार्तिकेय, संपा० ए० एन० उपाध्ये, परमश्रुत
प्रभावक मण्डल, अगास, वि० सं० २०३४, गाथा ४७८ १५. भगवतीसूत्र, १/९ १६. आयारो, पृ० २७४ (८. ३१) १७. देखें, उदयचंद जैन का निबन्ध, समता, अक्टूबर ९३ में, पृ० ३७ १८. चारित्तं खलु धम्मो धम्मो जो सो सगो त्ति णिट्ठिो । मोहक्खोहविहीणो परिणामो अप्पणो हु समो ।।
समणसुत्तं, गाथा २७४ १९. लाभालाभे सुहे दुक्खे जीविए मरणे तहा।
समो निंदापसंसासु तहा माणावमाणओ ॥ उत्तराध्ययनसूत्र, २०. ३७ २०. जो समो सव्वभूदेसु तसेसु थावरे सुपं ।
तस्य समाहयं होई इह केवलि भासियं ।। समणसुत्तं, गाथा ४२६ २१. उत्तमखममद्दवज्जव सच्चसउच्चं च संजमं चेव ।
तवचागमकिंचण्हं, बम्ह इदि दसविहो धम्मो ।। समणसुत्तं, गाथा ८४ उत्तमः क्षमामार्दवार्जवशौचसत्यसंयमतपस्त्यागाकिञ्चन्य ब्रह्मचर्याणि धर्मः। तत्त्वार्थसूत्र, उमास्वाति, विवेचक सुखलाल संघवी, पार्श्वनाथ विद्याश्रम, वाराणसी, संशोधित संस्करण, १९९३, १.७ । यहाँ पर ध्यातव्य है हिन्दू दर्शन में भी याज्ञवल्क्यस्मृति में नौ तथा मनुस्मृति में दस सामान्य धर्मों या धर्म-लक्षणों का उल्लेख हुआ है। मनु के अनुसार वे निम्रलिखित हैं - धृति, क्षमा, दम, अस्तेय, शौच, इन्द्रियनिग्रह, घी, विद्या,
सत्य, अक्रोध। २२. समणसुत्तं, ८५ २३. वही, ८६ २४. वही, ८८
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org