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________________ ७३ : अमण/अक्टूबर-दिसम्बर/१९९५ श्री मिश्रीमल जी म० की १०५ वी जयन्ती का मंगलमय आयोजन बहुत ही उल्लास के साथ मनाया गया। सर्वप्रथम पं० श्री नरेश मुनि जी म० ने मरुधरकेसरी जी म० के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि मरुधर केसरी जी म० श्रमणसंघ के एक ऐसे महापुरुष थे जिनके जीवन में अपार उदारता थी। जो भी उनके चरणों में पहुँच जाता था, वे उसे बहुत ही स्नेह और सद्भावना के साथ उसकी इच्छित वस्तुएँ प्रदान करते थे। आचार्यश्री देवेन्द्रमुनि ने मरुधर केसरी जी म० के प्रति श्रद्धासुमन समर्पित करते हए कहा - मरुधर केसरी जी म० श्रमणसंघ के भीष्म पितामह थे, वे दया के देवता थे, मानवता के मसीहा थे, संगठन के सजग प्रहरी थे, समाज चेतना के प्राण थे, वे लौह पुरुष थे। समाज में फैल रही बुराईयों से वे सदा जूझते रहे। अपने मंगलमय ओजस्वी तजस्वी भाषणों के द्वारा जनचेतना में जागृति का शंख फूंकते रहे। परमविदुषी महासती उपप्रवर्तिनी श्री रविरश्मि जी म० ने श्रद्धा सुमन समर्पित किया। कई श्रद्धालुओं ने अपने हृदय से उनके चरणों में भावाञ्जलि समर्पित की तथा एकासन दिवस के रूप में जयन्ती कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। श्री किशोर चन्द्र एम० वर्धन भारत जैन महामंडल के अध्यक्ष निर्वाचित पार्श्वनाथ विद्यापीठ तथा जैन समुदाय की विभिन्न सामाजिक एवं धार्मिक संस्थाओं से विभिन्न रूपों में सम्बद्ध श्री किशोर एम० वर्धन को अखिल भारतीय भारत जैन महामण्डल का सर्वसम्मति से अध्यक्ष चुना गया। इस गौरवपूर्ण पद पर श्री वर्धन जी के निर्वाचित होने पर विद्यापीठ परिवार उनका हार्दिक अभिनन्दन करता है। क्षमा प्रदान करने से मानव पवित्र होता है - आचार्य देवेन्द्र मुनि पानीपत (हरियाणा), २९/८/९५ को गांधी मण्डी पानीपत में विशाल धर्म सभा को सम्बोधित करते हुए जैन धर्म दिवाकर आचार्य सम्राट श्री देवेन्द्रमुनि जी म० ने कहा, क्षमा मानव की सबसे बड़ी शक्ति है। मानव की मानवता के पूर्ण दर्शन क्षमा में ही हो सकते हैं। वह मानव क्या जो जरा सी बात पर ही उबल पड़ता हो, वैर विरोध की आग भड़काता हो, स्वयं उस आग में जलता हो और दूसरों को भी जलाता हो। क्षमाहीन मानव पशुओं से भी गया गुजरा है। क्षमा का अर्थ है क्रोध न करना, क्रोध न करने से आत्मा में जो शान्तिरूपी पर्याय प्रकट होती है, वह क्षमा है। आचार्यश्री ने आगे कहा कि क्षमाशील व्यक्ति सहनशील भी होता है। किसी के द्वारा किये गये अपराध को भूल जाता है तथा दूसरों के द्वारा किये गये अनुचित व्यवहार पर For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.525024
Book TitleSramana 1995 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1995
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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