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श्रमण
पुस्तक समीक्षा
प्रकाशक
पुस्तक - छक्खंडागम- लेहण - कंधा, सम्पादक डॉ० राजाराम जैन, प्राच्य श्रमण भारती प्रकाशन समिति, दि० जैन समाज ( बिहार ), प्रथम संस्करण १९९१-९२, आकार क्राउन, पृष्ठ ६२, मूल्य १० रुपये।
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इस लघु पुस्तिका में विशेषत: दिगम्बरः परम्परा में आगम ग्रन्थ के रूप में मान्य पुष्पदन्त भूतबलि द्वारा प्रणीत, षट्खण्डागम ग्रन्थ के लेखन का वृत्तान्त और सामान्यत: जैन शौरसेनी प्राकृत आगम के लेखन की कथा का विवरण सम्पादक डॉ० राजाराम जैन ने षट्खण्डागम की धवला टीका में प्राप्त उद्धरणों के आधार पर प्रस्तुत किया है। प्राकृत के मूल उद्धरणों के साथ उनकी हिन्दी और उद्धरणों में प्राप्त पारिभाषिक शब्दों आदि पर टिप्पणी भी प्रस्तुत की गई है।
ज्ञातव्य है कि दिगम्बर परम्परा महावीर के निर्वाण के ६८३ वर्ष बाद द्वादशाङ्गों का लोप मानती है। परम्परा के अनुसार संयोग से द्वादशाङ्गी वाणी के कुछ अंश का आचार्य धरसेन को ज्ञान था । अपने ज्ञान को सुरक्षित रखने के लिए उन्होंने आन्ध्रप्रदेश के दो तपस्वी साधुओं पुष्पदन्त एवं भूतबलि को अध्ययन कराया। धरसेन ने उन्हें दृष्टिवाद के अन्तर्गत पूर्वसाहित्य तथा आचाराङ्गसूत्र के कुछ अंशों का अध्ययन कराया था जिसके आधार पर षट्खण्डागम की रचना हुई ।
शौरसेनी आगमों के रचनाकाल- विवरण जानने की दृष्टि से यह कृति संग्रहणीय है। पुस्तक का मुद्रण सुन्दर एवं निर्दोष है। सम्पादक का प्रयास प्रशंसनीय है।
पुस्तक जैन दर्शन अने सांख्य योग मां ज्ञान दर्शन विचारणा, लेखिका जागृति दिलीप शेठ, प्रकाशक संस्कृत - संस्कृति ग्रन्थमाला, २३ वालकेश्वर सोसाइटी, अंबावाडी, अहमदाबाद, प्रथम संस्करण १९९४, आकार डिमाई, पृष्ठ २१८, मूल्य रु० १५०.००
प्रस्तुत कृति जागृति दिलीप शेठ द्वारा पीएच० डी० की उपाधि हेतु प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध का परिवर्धित रूप है। पुस्तक पाँच प्रकरणों में विभक्त है। प्रथम प्रकरण में उपनिषद् एवं गीता के अनुसार ज्ञान और दर्शन की विचारणा की गई है, जिसमें स्पष्ट किया गया है कि दर्शन शब्द का अर्थ श्रद्वा के साथ-साथ बोधरूप भी है। गीता में ज्ञान और दर्शन की व्याख्या करते समय शंकर और रामानुज के मतों का भी यथास्थान समावेश किया गया है। द्वितीय प्रकरण में जैन दर्शन और सांख्य योग में ज्ञान और दर्शन के धारक के स्वरूप की
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गवेषणा की गई है जिसमें सांख्य-योग-सम्मत आत्मा की जैन सम्मत आत्मा की अवधारणा
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