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: श्रमण / अक्टूबर-दिसम्बर / १९९५
राग, द्वेष, स्त्री, चोर आदि समाज को विकृत करने वाली कथा, विकथा कही जाती है। अकथा और विकथा द्वारा जीवन में नैतिकता नहीं आ सकती । अतः मानव जीवन को सुखी बनाने के लिये कथा को ही श्रेयस्कर कहा गया है।
गया है
दशवैकालिक में वर्ण्य विषय की दृष्टि से चार प्रकार की कथाओं का उल्लेख किया अर्थ- कथा, काम-कथा, धर्म-कथा, मिश्रित-कथा । हरिभद्रसूरि ने समराइच्चकहा में कथाओं के चार भेद किये हैं अर्थ- कथा, काम-कथा, धर्म-कथा, संकीर्ण-कथा | उद्योतनसूरि ने कथाओं के तीन भेद किए हैं धर्म-कथा, अर्थ - कथा, काम-कथा ।
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अर्थ-कथा लौकिक जीवन में अर्थ का प्राधान्य है, अतः मानव की आर्थिक समस्याओं और उनके विभिन्न प्रकार के समाधानों का कथा में निरूपण करना अर्थ-कथा है। दशवेकालिक में विद्या, शिल्प के विविध उपाय, साहस, संचय, दाक्षिण्य, साम, दाम, दण्ड, भेद तथा अर्थ की सिद्धि बताने वाली कथा को अर्थ-कथा कहा गया है । हरिभद्र ने असि, मसि, कृषि, वाणिज्य, शिल्प, धातुवाद और अर्थोपार्जन के हेतु साम, दाम, दण्ड, भेद आदि से युक्त कथा को अर्थ- कथा कहा है ।"
काम-कथा काम - कथा में रूप सौन्दर्य के अतिरिक्त यौन समस्या का कलात्मक ढंग से निवेषण किया जाता है। रूप, सौन्दर्य, दाक्षिण्य, अवस्था, वेशभूषा कलाओं की शिक्षा, दृष्ट, श्रुत और अनुभूत का परिचय कराने वाली कथा को काम कथा कहा गया है। "
धर्म-कथा - धर्म - कथा में धर्म, शील तप, संयम, पुण्य और पाप के रहस्य के सूक्ष्म विवेचन के साथ मानव प्रकृति की सम्पूर्ण विभूति का उज्ज्वल चित्रण किया जाता है। जिनदासगणि ने सर्वज्ञोक्त अहिंसा आदि धर्म-सम्बन्धी कथन करने वाली कथा को धर्म-कथा कहा है ।" हरिभद्र ने श्रमण के दश धर्मों से युक्त तथा अणुव्रतों से युक्त कथा को धर्म-कथा कहा है ।" महाकवि पुष्पदन्त ने अभ्युदय और निःश्रेयस की संसिद्धि करने वाली सद्धर्म से निबद्ध कथा को धर्म-कथा कहा है।२ उद्योतनसूरि ने विभिन्न प्रकार के प्राणियों के विभिन्न प्रकार के भाव-विभाव का निरूपण करने वाली कथा को धर्म-कथा कहा है। चार प्रकार के पुरुषार्थों का कथन करने वाली धर्म-कथा के चार भेद आगम-ग्रन्थों में कहे गये हैं।
१. आक्षेपणी कथा ज्ञान और चरित्र के प्रति आकर्षण पैदा करने वाली, श्रोता के मन को अनुकूल लगने वाली ।
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२. विक्षेपणी कथा परमत का कथन कर स्वमत की स्थापना करने वाली । ३. संवेदनी कथा - संसार के दुःख, शरीर की अशुचिता आदि दिखाकर वैराग्य
उत्पन्न करने वाली ।
४. निर्वेदनी कथा कर्मों के फल दिखाकर संसार से विरक्ति उत्पन्न करने वाली । मिश्रित-कथा - अर्थकथा, कामकथा और धर्मकथा इन तीनों का सम्मिश्रण इस विधा में पाया जाता है। इन कथाओं का मुख्य विषय राजाओं और वीरों की शौर्य गाथायें, व्यापारी और सार्थवाहों की साहसिक समुद्री यात्रायें, दान, शील तप, वैराग्य से युक्त कथायें, क्रोध,
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