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________________ ८ : श्रमण / अक्टूबर-दिसम्बर / १९९५ में रखने का विशेष आग्रह किया है। अशोक ने जिस विशाल भू-भाग पर शासन किया, वह अधिकांश में उसके पितामह चन्द्रगुप्त मौर्य की देन थी । चन्द्रगुप्त के संघर्ष-काल में ही भारत पर सिकन्दर का आक्रमण हुआ जिसकी तिथि सर्वथा निश्चित है। यूनानी इतिहासकार प्लूटार्क और जस्टिन दोनों ने सिकन्दर के साथ चन्द्रगुप्त के भेंट का उल्लेख किया है। यह भेंट ३२६ ई० पूर्व हुई जो सिकन्दर के अवसान एवं इसके तुरन्त पश्चात् भारत से प्रस्थान एवं चन्द्रगुप्त के उत्थान का काल है। चन्द्रगुप्त ने एक राजा के रूप में या एक विद्रोही सैनिक के रूप में सिकन्दर से भेंट की थी कहना कठिन है । यद्यपि विश्वविजयी सिकन्दर से किसी विद्रोही सैनिक का मिलना सम्भव नहीं प्रतीत होता । अतः यह निश्चित सा जान पड़ता है कि चन्द्रगुप्त ने अपने को राजा घोषित कर ( भले ही किसी छोटे प्रदेश का ) सिकन्दर से भेंट की और उससे एक राजा की तरह मिला। जैसा कि बाद की घटनाओं से स्पष्ट है कि सिकन्दर चन्द्रगुप्त की स्वाभिमान भरी बातें सुनकर उसे दण्ड देने की कोशिश की । चन्द्रगुप्त किसी प्रकार वहाँ से अपने को बचा सका । इससे यह ध्वनित होता है कि ३२६ ई० पूर्व या उसके आस-पास ही चन्द्रगुप्त मौर्य का राज्याभिषेक हुआ और उसके कुछ वर्ष उपरान्त परिस्थितियों को अपने वश में कर ३२२-३२१ ई० पू० में वह स्थायी रूप से मगध की गद्दी पर बैठा । जैन, बौद्ध एवं विदेशी साक्ष्य यह स्पष्ट करते हैं कि चन्द्रगुप्त ने २४ वर्ष और उसके पुत्र अशोक के पिता बिन्दुसार ने २५ वर्ष तक राज्य किया । इस प्रकार अशोक का राज्याभिषेक २७७ ई० पूर्व में होना सिद्ध होता है" । ३२६-२४-२५ = बौद्ध एवं यूनानी साक्ष्यों से प्रमाणित २७७ ई० पू० में यदि हम अशोक का राज्याभिषिक्त होना स्वीकार करते हैं तो सिंहली ग्रन्थों के अनुसार बुद्ध का निर्वाण २७७ + २१८ = ४९५ ई० पू० में होना सिद्ध होता है। चूँकि महावीर का निर्वाण बुद्ध के निर्वाण के १४ वर्ष बाद हुआ अतः महावीर का निर्वाण ४९५ १४ = ४८१ ई० पू० में होना निश्चित होता है। अब हम जैन साहित्य के अन्तः साक्ष्यों के आधार पर महावीर की उपर्युक्त निर्वाण-तिथि ( ४८१ ई० पू० ) को परखने का प्रयास करेंगे। २१५ महावीर के निर्वाण और चन्द्रगुप्त के राज्याभिषेक के पारस्परिक सम्बन्ध के विषय में जैन परम्परा में दो मत हैं । एक मत के अनुसार चन्द्रगुप्त का राज्याभिषेक वीर निर्वाण संवत् में हुआ तथा दूसरे मत के अनुसार वीर निर्वाण के १५५ वर्ष बाद ' । प्रथम तित्थोगाली प्रकीर्णक का है जो एक बाद की रचना है। इसके आधार पर यदि हम २१५वें वर्ष में चन्द्रगुप्त के राज्याभिषेक को स्वीकार करें तो महावीर का जीवन काल इतना प्राचीन हो जाता है कि उस पर कोई भी इतिहासकार सहमत नहीं होगा। दूसरे मत के प्रतिष्ठापक जैन आचार्य हेमचन्द्र हैं जिनकी कृतियाँ जैन धर्म की आधार स्तम्भ हैं। आचार्य हेमचन्द्र के मत को स्वीकार करने पर महावीर की निर्वाण तिथि ३२६ + १५५ = ४८१ ई० पू० निश्चित होती है। यह तिथि यूनानी एवं बौद्ध साक्ष्य से एकदम सटीक बैठती है । अस्तु जैन, बौद्ध एवं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525024
Book TitleSramana 1995 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1995
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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