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________________ ६ : प्रमण/अक्टूब-दिसम्बर/१९९५ वह यह है कि अजातशत्रु के राज्याभिषेक के समय महावीर ५० वर्ष के एवं बुद्ध ७२ वर्ष के रहे होंगे तथा बुद्ध की मृत्यु के समय महावीर की आयु ५८ वर्ष रही होगी तथा इसके १४ वर्ष उपरान्त स्वयं महावीर की मृत्यु हुई। दीघनिकाय के उपर्युक्त ऐतिहासिक साक्ष्य के अतिरिक्त इसी ग्रन्थ में ही एक विपरीत सन्दर्भ भी प्राप्त होता है। इससे यह ज्ञात होता है कि महावीर की मृत्यु बुद्ध के जीवन-काल में ही हो गई थी। दीघनिकाय के अनुसार एक बार बुद्ध जब शाक्यों के आम्रवनप्रासाद में विहार कर रहे थे तो महावीर की मृत्यु के उपरान्त निर्ग्रन्थों के पारस्परिक मतभेद एवं वाक्कलह की सूचना उनके पास पहुंची थी। दीघनिकाय का यह सन्दर्भ हमें असमंजस में डाल देता है। "हम देखते हैं कि जहाँ एक ओर त्रिपिटक साहित्य में महावीर को अधेड़वय का कहा गया है, वहीं दूसरी ओर बुद्ध के जीवनकाल में उनके स्वर्गवास की सूचना भी है। इतना निश्चित है कि दोनों बातें एक साथ सत्य सिद्ध नहीं हो सकतीं। मुनि कल्याणविजयजी आदि ने बुद्ध के जीवन काल में महावीर के निर्वाण-सम्बन्धी अवधारणा को भ्रान्त बताया है। उन्होंने महावीर के काल-कवलित होने की घटना को उनकी वास्तविक मृत्यु न मानकर, उनकी मृत्यु का प्रवाद माना है। जैन आगमों में भी यह स्पष्ट उल्लेख है कि उनके निर्वाण के लगभग १६ वर्ष पूर्व उनकी मृत्यु का प्रवाद फैल गया था जिसे सुनकर अनेक जैनश्रमण भी अश्रुपात करने लगे थे। चूँकि इस प्रवाद के साथ महावीर के पूर्व शिष्य मंखलिगोशाल और महावीर एवं उनके अन्य श्रमण शिष्यों के बीच हुए कटु-विवाद की घटना जुड़ी हुई थी। अतः दीघनिकाय का प्रस्तुत प्रसंग इन दोनों घटनाओं का एक मिश्रित रूप है। अत: बुद्ध के जीवन-काल में महावीर की मृत्यु के दीघनिकाय के उल्लेख को उनकी वास्तविक मृत्यु का उल्लेख न मानकर गोशालक के द्वारा विवाद के पश्चात् फेंकी गई तेजोलेश्या से उत्पन्न दाह-ज्वर-जन्य तीव्र बीमारी के फलस्वरूप फैले उनकी मृत्यु के प्रवाद का उल्लेख मानना होगा। उपर्युक्त तर्क के आलोक में हम इस ऐतिहासिक निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि अजातशत्रु के राज्याभिषेक के ८वें वर्ष में बुद्ध की एवं उसके १४ वर्ष बाद स्वयं महावीर की मृत्यु हुई। अजातशत्रु के राज्याभिषेक-वर्ष को निश्चित करने के लिए हमारे पास कोई ऐतिहासिक साक्ष्य नहीं है। प्रसिद्ध इतिहासकार राधाकुमुद मुकर्जी ने बिम्बिसार के राज्यकाल को ५४४ ईसा पूर्व से ४९३ ई० पूर्व तक तथा अजातशत्रु के राज्यकाल को ४९३ ई० पूर्व से ४६२ ई० पूर्व में रखा है परन्तु उनकी यह एक सम्भावना मात्र है, इसका कोई ठोस आधार नहीं। प्रथम अन्तर्राष्ट्रीय धर्म के प्रणेता के रूप में बुद्ध की निर्वाण-तिथि पर विचार किया जा सकता है - यद्यपि इस पर विद्वानों में गम्भीर मतभेद हैं। बुद्ध के सम्बन्ध में भारतीय साक्ष्यों के अतिरिक्त विदेशी साक्ष्य भी प्राप्त होते हैं। विदेशी साक्ष्यों में चीन के डाटेड रिकार्ड (Dotted Record ) एवं सिंहल (श्रीलंका) के दीपवंस एवं महावंस ग्रन्थ सबसे प्रमुख हैं। चीन के डाटेड रिकार्ड के सम्बन्ध में यह माना जाता है कि कैण्टन में एक पट्टिका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525024
Book TitleSramana 1995 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1995
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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