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प्रधान सम्पादक
प्रो. सागरमल जैन
सम्पादक डॉ. अशोक कुमार सिंह
सह-सम्पादक डॉ. शिवप्रसाद
वर्ष ४६]
जुलाई - सितम्बर, १९९५
। अंक ७ -९
प्रस्तुत अङ्क में १. युगीन परिवेश में महावीर
स्वामी के सिद्धान्त -- डॉ. सागरमल जैन १-६ २. भक्तामरस्तोत्र : एक अध्ययन ~~ डॉ. हरिशंकर पाण्डेय ७ - ९. ३. नागेन्द्रगच्छ का इतिहास - डॉ. शिवप्रसाद २० - ६५ ४ अर्धमागधी भाषा में सम्बोधन
का एक विस्मृत शब्द प्रयोग 'आउसन्ते'
- डॉ. के. आर. चन्द्र ६६ - ६१ ५. चातुर्मास : स्वरूप और परम्पराएँ
- कलानाथ शास्त्री ७०-७३ ६ वाचक श्रीवल्लभरचित 'विदग्ध
मुण्डन' की दर्पण टीका की पूरी प्रति अन्वेषणीय है
- स्व० अगरचन्द नाहटा ७४ - ७५ ७ द्रौपदी कथानक का जैन और
हिन्दू स्रोतों के आधार पर तुलनात्मक अध्ययन
श्रीमती शीला सिंह ७६ ८२ ८ पुस्तक समीक्षा ९. जैन जगत्
८९ - ९८ १०. प्रवेश विज्ञापन
९९ - १००
८३ - ८८
वार्षिक शुल्क - चालीस रुपये एक प्रति - दस रुपये यह आवश्यक नहीं कि लेखक के विचारों से सम्पादक अथवा संस्थान सहमत हों।
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