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________________ श्रमण/जुलाई-सितम्बर/१९९५ यहाँ प्रभु संस्तव के कर्मान्धकार- विदारण सामर्थ्य को द्योतित करने के लिए सूर्यांशु को उपमान बनाया गया है। इसी प्रकार ८, ६, २८ वाँ श्लोक भी द्रष्टव्य है I १६ : (ख) परिकर साभिप्राय विशेषणों का प्रयोग परिकर अलंकार होता है। प्रभु के अनेक गुणनिष्ठ विशेषणों के द्वारा भक्त उनका गुणगायन करता है । स्तुति साहित्य का यह प्रिय अलंकार है। १. नात्यद्भुतं भुवन भूषणः भूतनाथ ! ४५ २. बुद्धस्त्वमेव विबुधार्चित ! बुद्धिबोधात् त्वं शंकरोऽपि भुवनत्रयशंकरत्वात् । । ( ग ) दृष्टान्त उपमेय- उपमान में बिम्ब- प्रतिबिम्ब भाव होने पर दृष्टान्त अलंकार होता है। इसमें लौकिक या शास्त्रीय उदाहरणों से वर्णनीय का सफलतापूर्वक उपन्यास किया जाता है । भक्तामर में अनेक स्थलों पर इसका प्रयोग हुआ है १. भक्त की असमर्थता को प्रकट करने के लिए बालं बिहाय जलसंस्थितमिन्दुबिम्ब: - ३ दृष्टान्त अलंकार के साथ अर्थापत्ति का सुन्दर प्रयोग उपर्युक्त और अधोविन्यस्त दोनों उदाहरणों में हुआ है - पीत्वा पयः शशिकर चुतिदुग्धसिन्धोः ।। व्यतिरेक सामान्यतया उपमान, उपमेय से अधिक गुण वाला होता है, लेकिन जहाँ पर उपमेय की अपेक्षा उपमान हस्व हो, वहाँ व्यतिरेक अलंकार होता है । भक्तामर का यह प्रिय अलंकार है । अनेक स्थलों पर भगवान् ऋषभदेव की गुणीय उदात्तता एवं श्रेष्ठता के प्रतिपादन के लिए इसका उपयोग किया गया है १. प्रभु की अलौकिकता को द्योतित करने के लिए उन्हें अमरदीप यानी सामान्य दीपक से श्रेष्ठ बताया गया है। २. भगवान सूर्य से भी अधिक महिमा वाले हैंसूर्यातिशायिमहिमासि मुनीन्द्र ! लोके ! १८, १९ ३. मूर्ख सौन्दर्य की अधिकता ४. भगवान की श्रेष्ठता २१ ५. ऋषभ जननी की श्रेष्ठता अर्थापत्ति Jain Education International २२ कैमुतिक न्याय और दण्डापुपिका- न्याय से अर्थापत्ति अलंकार - होता है। उदाहरणार्थ १५वां श्लोक द्रष्टव्य है । ललित उदात्त का सौन्दर्य १. ललित वस्तु में निहित आकर्षण तत्त्व एवं आह्लादकारिता सौन्दर्य का अनिवार्य गुण है। इस आकर्षण के में मूल www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only - -
SR No.525023
Book TitleSramana 1995 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1995
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size5 MB
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