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________________ जैन जगत् कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर को शोध संस्थान की मान्यता २१-२२ फरवरी १६६५ को, कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर एवं देवी अहिल्या विश्वविद्यालय, इन्दौर के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित जैनविद्या संगोष्ठी एवं अर्हत्वचन पुरस्कार समर्पण समारोह में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो० ए० ए० अब्बासी ने कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ को शोध-संस्थान की मान्यता प्रदान की। इस अवसर पर देश के विविध अंचलों से पधारे अनेक मूर्धन्य विद्वान उपस्थित थे जिनमें मुख्य हैं - पं० नाथूलाल शास्त्री, प्रो० उदय जैन, डॉ० टी० व्ही० जी० शास्त्री, डॉ० लालबहादुर जैन, प्रो० एल० सी जैन, डॉ० नीलम जैन, डॉ. अभयप्रकाश जैन, प्रो० जे० एन० कपूर, प्रो० गणेश कावड़िया, डॉ० आर० सी० नागर एवं डॉ० आर० सी० जैन। जिन विद्वानों को इस अवसर पर कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया, वे हैं - प्रो० लक्ष्मी चन्द्र जैन, जबलपुर; डॉ० राजाराम जैन, कुन्दकुन्द भारती, नई दिल्ली एवं प्रो० जे० एन० कपूर, नई दिल्ली। समारोह का समापन करते हुए कार्यक्रम संयोजक/सचिव डॉ० अनुपम जैन ने सभी सभागत विद्वानों को आभार ज्ञापित किया। प्राचीन संस्कृति धरोहर - पावागढ़ तीर्थ _समुद्र के धरातल से २८०० फीट की ऊँचाई पर बसा पावागढ़ जैन तीर्थ अति प्राचीन तीर्थ रहा है। इतिहास की गहराइयों में जाने से पता चलता है कि यह ग्यारहवीं शताब्दी से भी प्राचीन जैन तीर्थ रहा है। ग्यारहवीं शताब्दी से उन्नीसवीं शताब्दी तक इस तीर्थ पर खूब उतार चढ़ाव आये। मुगल शासन काल के मोहम्मद शाह बेगड़ा व आत्मानी सुलतान के क्रूर आक्रमण से इस तीर्थ के जैन मन्दिरों को काफी क्षति हुई, किन्तु समय की गति के साथ पुनः तीर्थ का जीर्णोद्धार होता रहा और तीर्थ को उसकी खोई प्रतिष्ठा प्राप्त हो गयी। जैन दिवाकर पूज्य आचार्य श्रीमद् विजय इन्द्र दिन्न सूरीश्वर जी म० सा० की प्रेरणा से आपके शिष्य श्री विजय जगचन्द्र सूरि जी के तत्त्वावधान में २ मई को पुनः इस तीर्थ का पुनरुद्धार किया गया और तबसे आज तक श्वेताम्बर जैन धर्मावलम्बियों का यह पवित्र पावन तीर्थ दिनोंदिन धार्मिक प्रगति के शिखर पर अग्रसर हो रहा है। ऐसा लगता है कि यह स्थल भविष्य में जन चेतना, मानवीय सेवा और विश्वशान्ति का उद्बोध स्थल भी बन जायेगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525021
Book TitleSramana 1995 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1995
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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