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________________ 9+ जैनधर्म में भक्ति का स्थान आध्यात्मिक विकास या पतन करता है। स्वयं पाप से मुक्त होने का प्रयत्न न करके केवल भगवान् से मुक्ति की प्रार्थना करना, जैनधर्म के अनुसार सर्वथा निरर्थक है। इस प्रकार की विवेकशून्य प्रार्थनाओं ने मानव जाति को सब प्रकार से हीन, दीन एवं परापेक्षी बनाया है । जब व्यक्ति किसी ऐसे उद्धारक में विश्वास करने लगता है, जो उसकी स्तुति से प्रसन्न होकर उसे पाप से उबार लेगा तो इस प्रकार की निष्ठा से सदाचार को मान्यताओं को एक गहरा धक्का लगता है। जैन विचारकों को यह स्पष्ट मान्यता है कि केवल तीर्थंकरों को स्तुति करने मात्र से मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती जब तक कि व्यक्ति स्वयं उसके लिए साधना न करे ( आवश्यकचूणि )। तीर्थकर तो साधना मार्ग के प्रकाश-स्तम्भ हैं । जिस प्रकार गति करना जहाज का कार्य है उसी प्रकार साधना की दिशा में आगे बढ़ना साधक का कार्य है। जैसे प्रकाश-स्तम्भ की उपस्थिति में भी जहाज समुद्र में बिना गति किये उस पार नहीं पहुँचता है वैसे ही केवल नामस्मरण या भक्ति साधक को निर्वाण की प्राप्ति नहीं करा सकती, जब तक कि वह स्वयं उसके लिए सम्यक् प्रयत्न न करे। विष्णुपुराण में कहा गया है स्वधर्म कर्म विमुखः कृष्णकृष्णेतिवादिनः । ते हरिदे॒षिणो मूढाः धर्मार्थ जन्म यद्धरेः ॥ जो लोग अपने कर्तव्य को छोड़ बैठते हैं और केवल कृष्ण-कृष्ण कहकर भगवान् का नाम जपते हैं, वे वस्तुतः भगवान् के शत्रु हैं और पापी हैं, क्योंकि धर्म की रक्षा के लिए तो स्वयं भगवान् ने भी जन्म लिया था। बाइबिल में भी कहा गया है कि हर कोई, जो ईसा-ईसा पुकारता है, स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं पायेगा; अपितु वह पायेगा जो परम पिता की इच्छा के अनुसार काम करता है ( बाइबल, जोन २.९-११)। महावीर ने कहा है कि एक मेरा नामस्मरण करता है और दूसरा मेरी आज्ञाओं का पालन करता है, उनमें जो मेरी आज्ञाओं के अनुसार आचरण करता है वही सच्चे रूप में मेरी उपासना करता है। फिर भी हमें स्मरण रखना चाहिए कि जैन परम्परा में भक्ति का लक्ष्य आत्मस्वरूप का बोध है, अपने में निहित परमात्मा को पहचानना है । आचार्य कुन्दकुन्द नियमसार में लिखते हैं कि सम्यक् Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525021
Book TitleSramana 1995 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1995
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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