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जैन जगत्
विविध विशेषताओं के संगम : आचार्य सम्राट श्री देवेन्द्र मुनि जी म सा ( जन्म जयन्ती पर विशेष )
जैनधर्म दिवाकर आचार्य सम्राट श्री देवेन्द्र मुनि म० सा० ज्ञानयोग, कर्मयोग और भक्तियोग के दुर्लभ त्रिवेणी संगम हैं जो उन्हें जन-जन के लिए वंदनीय और श्रद्धा के केन्द्र बिन्दु के रूप में प्रतिष्ठित करता है। आपका जीवन प्रतिभा, परिश्रम एवं प्रेम का अक्षय निर्भर है ।
आपका जन्म दिनांक ७ नवम्बर १९३१ को उदयपुर के प्रसिद्ध जैन वरड़िया परिवार में हुआ था । बचपन में ही पिता श्री जीवन सिंह जी वरड़िया का साया सिर पर से उठ जाने के बाद माताश्री तीजाबाई ने आपके जीवन को संस्कार एवं शिक्षा से अनुप्राणित किया । पूर्वजन्मकृत सुकृत की प्रेरणा से केवल नौ वर्ष की लघुवय में सन् १९४१ में आपने! खण्डप जिला • बाड़मेर ( राजस्थान ) में उपाध्याय प्रवर श्री पुष्कर मुनिजी म० सा० के श्रीचरणों में आर्हती दीक्षा धारण कर साधना के असिधारा पथ पर चलने का संकल्प किया और आज भी अनवरत रूप से उस साधना पथ पर अग्रसर हैं ।
हिन्दी, संस्कृत, प्राकृत आदि भाषाओं के ज्ञान के साथ जैन आगम साहित्य का गंभीर अध्ययन आपने किया और तीक्ष्ण प्रज्ञाबल व व्युत्पन्न मेधा शक्ति के कारण शीघ्र ही आपने जैन तत्त्वज्ञान, आगम और दर्शन में अधिकारिक विद्वत्ता प्राप्त कर ली। जैन साहित्य की आपने अभूतपूर्व सेवा की है। जैन कथा साहित्य पर १११ पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं, जो आपके 'द्वारा सम्पादित हैं । जैन कथाओं के अतिरिक्त लगभग ५० अन्य पुस्तकों का लेखन आपने किया है जिनमें खिलती कलियाँ मुस्कुराते फूल, प्रतिध्वनि, जलते दीप, बूँद में समाया सागर, पढ़े सो पंडित होय, ज्योति से ज्योति जले आदि मुख्य हैं । इसके अतिरिक्त धर्म का कल्पवृक्ष, श्रावक धर्म दर्शन, ब्रह्मचर्य विज्ञान, साहित्य और संस्कृति, चिन्तन की चाँदनी, अनुभूति के आलोक में आदि आपकी ऐसी रचनाएँ हैं जो साहित्य की अनेक विधाओं पर आपके बहुआयामी ज्ञान को द्योतित करती है ।
महामहिम आचार्य सम्राट श्री आनन्दऋषि जी के स्वर्गवास के बाद आप श्रमण संघ के तृतीय आचार्य पद पर आसीन हुए हैं। आपकी प्रेरणा से हजारों व्यक्ति व्यसनमुक्त जीवन जीने के लिए प्रेरित हुए हैं । १ नवम्बर, १९९४ को आप ६४ वर्ष पार कर ६५ वें वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं ।
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