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________________ आचार्य सम्राट् पूज्य श्री आत्मारामजी महाराज : एक अंशुमाली - हीरालाल जैन पूर्व दिशा में सूर्य का उदय नहीं होता है। जहाँ सूर्य का उदय होता है, उस दिशा को पूर्व दिशा कहा जाता है। आचार्य आत्मारामजी म. सा. भी एक ऐसे ही अंशुमाली हैं, सूर्य हैं। इस भास्कर की भव्य किरणें आज तक समस्त भूमण्डल को भास्वरित, आलोकित व प्रकाशित करती रही हैं। कहा भी है-- दूर सहस्र किरण कुस्ते प्रभव, पद्माकरेषु जलजानि विकासभाज्जि। सूर्य चाहे दूर हो परन्तु उसकी किरणें ही इस धरती को प्रकाशित और सरोवर के कमलों को विकसित कर सकती हैं। श्रमण संघ के अपूर्व सूर्य आत्मारामजी महाराज की जीवन किरणों से संघ सरोवर के अनेक कमल आज भी विकसित हो रहे हैं। सूर्य की सभी किरणें कभी पकड़ी नहीं जाती फिर भी विशेष प्रयोग से कुछ किरणों को पकड़कर अनेकानेक कार्य हो सकते हैं। वैसे ही आचार्यश्री का जीवन भी अनेक किरणों से मण्डित है, पर इसमें कुछ किरणों को एकत्रित करके संघ सुशोभित हो सकता है। जन्म जिनका सम्पूर्ण जीवन जन्म और मृत्यु से परे होने की साधना में समाहित रहा, उस महापुरुष के जन्म का सौभाग्य पंजाब की पावन धरती को मिला। महापुरुष तीर्थों में ही जन्म लें यह जरूरी नहीं, पर महापुरुषों का जहाँ जन्म होता है। वह भूमि तीर्थ बन जाती है। भूले-भटके अनेकों को राह दिखाने वाले राहबर का जन्म जालन्धर के "राहो" नामक कस्बे में हुआ है। भद्रपरिणामी उन भव्य पुरुष की भ्रद्रिकमाता ने भाद्रपद का महीना दूढा और सं. 1939 के भाद्रशुक्ल पक्ष में जन्म दिया। आत्मा के राम को जन्म देने के लिए मन से राम बनना और परमात्मा के रूप को आकार देने के लिए स्वयं ईश्वर स्वरुप रहना जैसे जरूरी है, वैसे पिता मनसाराम और माता परमेश्वरी देवी ने उन्हें जन्म देने का सौभाग्य प्राप्त किया। दो वर्ष की अवस्था में आपकी माता आपका ध्यान परमेश्वरत्व की ओर अग्रसर करके स्वयं परमेश्वर को प्यारी हो गयीं और आठ वर्ष की अवस्था में आपके पिताश्री आपको असीम मनोबल प्रदान कर स्वर्ग सिधार गये। कुछ दिन आप अपनी वृद्ध दादीजी के पास रहे, पर वह भी शीघ्र ही परलोक सिधार गयीं। माता, पिता और दादी की मृत्यु ने आपको संसार की नश्वरता का आभास दिला दिया। कुछ समय अन्य स्वजनों के साथ बिताने से आपको संसार की स्वार्थीवृत्ति का अनुभव हुआ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525020
Book TitleSramana 1994 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1994
Total Pages50
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size3 MB
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