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________________ सम्बन्धित प्रसंगानुसारी अनेक कथाएँ भी दी गयी हैं। इस प्रकार यह जैन परम्परा का एक कथा कोश ही है। आराधना कथाकोश या बृहत कथाकोश की तरह इसमें भी अनेक कथाएँ दी गयी है। ग्रन्थ मुख्यतः संस्कृत पद्य में है किन्तु कहीं-कहीं गद्य का भी प्रयोग किया गया है। वस्तुतः यह गद्य स्वोपज्ञ-टीका के रूप में ही है। यह कृति पर्याप्त समय से अनुपलब्ध थी तथा पूर्व में पत्राकार में छपी थी। मुनि चन्द्र विजयजी ने पूर्व प्रकाशित संस्करण की अशुद्धियों को दूर करके इसका पुनः सम्पादन किया। उन्होंने पर्याप्त परिश्चम करके इसका अ पलब्ध कराया इक लिए विद्धत वर्ग उनका आभारी रहेगा। शासन कि सेन्टर ने भीलडियाजी जैन तीर्थ के आर्थिक सहयोग से नन प्रका दोनों संस्थायें भी धन्यवाद की पात्र हैं। इस महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ में जो एक कमी खटकती है वह यह कि यदि इसके साथ एक विस्तृत और तुलनात्मक प्रस्तावना भी जुड़ जाती तो इसका महत्त्व और भी बढ़ जाता। भविष्य में संभवतः इस तथ्य को दृष्टिगत् रखा जायेगा। पुस्तिक की साज-सज्जा आकर्षक है तथा मुद्रण निर्दोष है। ग्रन्थ उपयोगी एवं संग्रहणीय पुस्तक -- आचार्य श्री विजयधर्मसूरिश्वर श्रद्धाञ्जलि विशेषांक; संपादक -- श्री यशोदेवसरिजी म.; प्रकाशक -- मुक्ति कमल जैन मोहनमाला, ठिकाना रावपुरा, कोटीपोल मंछासदन, बडोदरा (गुजरात); प्रकाशन वर्ष -- 1992; मूल्य 31.50/- मात्रः आकार -- डिमाई पेपर बैक प्रस्तुत कृति का प्रकाशन परमपूज्य युग दिवाकर आचार्य श्री विजयधर्मसूरिजी के श्रद्धाञ्जलि विशेषांक के रूप में हुआ है। इसके पहले भाग में परमपूज्य आचार्य श्री के सम्बन्ध में पूज्य मुनिराजों, साधुओं और अन्य व्यक्तियों के लेख और श्रद्धाञ्जलि गीत हैं। ग्रन्थ के द्वितीय भाग में श्रद्धाञ्जलियों और शोक-सन्देशों का संकलन किया गया है। तीसरे भाग में आचार्य श्री के स्वर्गवास के पश्चात् उनके निमित्त हुई श्रद्धाञ्जलि सभा का विवरण है साथ ही आचार्यश्री के निधन के बाद विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित समाचारों का संकलन है। चतुर्थ विभाग में आचार्य श्री तथा विभिन्न राजनेताओं और पूज्य मुनिराजों के बीच हुए संवादों का उल्लेख है। इस विभाग में आचार्य श्री के व्यक्तित्व की महानता का हमें सम्यक् परिचय मिल जाता है। पंचम-विभाग में आचार्य श्री और तत्कालीन मुनि श्री यशोदेवसूरिजी (आचार्य यशोदेवसूरिजी) परमपूज्य आचार्य विजयमोहनजी आदि के साथ हुए पत्र-व्यवहार को प्रस्तुत किया गया है जिसमें अनेक रस-प्रद एवं प्रेरणा-प्रद प्रसंगों का उल्लेख हुआ है। इस प्रकार यह सम्पर्ण ग्रन्थ आचार्य श्री विजयधर्मसरिजी के प्रभावशाली व्यक्तित्व को रेखांकित करता है। ग्रन्थ में अनेक चित्र भी दिये गये हैं जिससे ग्रन्थ का महत्त्व बढ़ गया है। आचार्य श्री के जीवन के सम्बन्ध में यह एक महत्त्वपूर्ण दस्तावेज है जो पुस्तकालयों के लिए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525019
Book TitleSramana 1994 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1994
Total Pages78
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size4 MB
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