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________________ पुस्तक-समीक्षा पुस्तक -- कुलपाक तीर्थ : माणिक्यदेव-ऋषभदेव लेखक -- महोपाध्याय विनयसागर प्रकाशक -- श्री श्वेताम्बर जैन तीर्थ कुलपाक प्रकाशन वर्ष -- 19917 मूल्य -- पचास रूपये मात्रः आकार -- डिमाई पेपर बैक प्रस्तुत कृति के लेखक महोपाध्याय विनयसागर जी ने कुलपाकजी तीर्थ, जिसका इतिहास कुछ ऐतिहासिक एवं कुछ प्रागैतिहासिक है, को इतिहास के विभिन्न उपादानों के आधार पर निष्पक्ष रूप से प्रस्तुत किया है। लेखक ने इस तीर्य के इतिहास को लिखने में परम्परागत मान्यताओं के साथ ही साथ शोधपरक दृष्टि का भी परिचय दिया है। ग्रन्थ के परिशिष्ट के रूप में दी गयी सामग्री ग्रन्थ की गरिमा को बढ़ाती है। इसी प्रकार मंदिरों एवं मूर्तियों का कलात्मक परिचय ग्रन्थ की मूल्यवत्ता को उजागर करता है। पुस्तक महत्त्वपूर्ण है। लेखक ने कुलपाक तीर्थ के इतिहास को प्रकाश में लाकर जैन जगत् ही नहीं,अपितु समग्र समाज के लिए उल्लेखनीय कार्य किया है, जो प्रशंसनीय है। ग्रन्थ अनेक दृष्टियों से उपयोगी है। पुस्तक --जिनवाणी के मोती; लेखक -- दुलीचन्द्र जैनः प्रकाशक -- जैन विद्या अनुसंधान प्रतिष्ठान, 18 रामानुज अय्यर स्ट्रीट साहुकारपेट, मद्रास, प्रकाशन वर्ष -- 1993, मूल्य पचास रुपये, आकार --डिमाई हार्डवाउण्ड 'जिनवाणी के मोती नामक इस कृति में लेखक ने भगवान महावीर की मूलवाणी एवं उनके संदेशों का संकलन आधुनिक सरल भाषा में भावार्थ के साथ प्रस्तुत किया है। इसमें प्राचीन भारतीय ज्ञान राशि के अद्भुत स्वरूप जैनागमों का सार तत्त्व उपलब्ध है। जैन आगमों ग्रन्थों की सूक्ति एवं गाथा संकलन के अनेक प्रयास हुए हैं जिनकी चर्चा प्रस्तुत कृति की भूमिका में प्रो. सागरमलजी जैन ने विस्तार से की है। सरल गाथाओं से युक्त इस कृति में मंगलसूत्र के अतिरिक्त आत्मतत्त्व, मोक्षमार्ग तत्त्व-ज्ञान, कषाय विजय, कर्मवाद, भावनासूत्र, धर्ममार्ग, ध्यानमार्ग एवं शिक्षापद नामक शीर्षकों के अन्तर्गत आगमिक गाथाओं के संकलन के साथ ही गाथाओं का हिन्दी अर्थ भी दिया गया है। जिससे सामान्य पाठकजन जो प्राकृत भाषाविज्ञ नहीं है, भी लाभान्वित होगें। प्रस्तुत कृति का उद्देश्य सामान्यजन में आगम ग्रन्थों के अध्ययन की अभिरुचि उत्पन्न करना है, जो निःसंदेह प्राकृत एवं जैन विद्या की अनुपम सेवा है। कृति के प्रारम्भ में प्रो. Jain Education International For Pri 62 & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525019
Book TitleSramana 1994 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1994
Total Pages78
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size4 MB
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