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सन्दर्भ
1. बृहद्गच्छीय वादिदेवसूरि के शिष्य रत्नप्रभसूरि द्वारा रचित उपदेशमालाप्रकरणवृत्ति [ रचनाकाल वि.सं. 1238 / ईस्वी सन् 1182] की प्रशस्ति.
Muni Punya Vijaya - Catalogue of Palm-Leaf Mss in the Shanti Nath Jain Bhandar, Cambay G.O.S. No. 149, Baroda, 1966 A. D., pp. 284-286.
6.
asiesires का इतिहास : एक अध्ययन
तपागच्छीय मुनिसुन्दरसूरि द्वारा रचित गुर्वावलि [ रचनाकाल वि.सं. 1466 / ईस्वी सन् 14091.
तपागच्छीय हीरविजयसूरि के शिष्य धर्मसागर द्वारा रचित तपागच्छपट्टावली [ रचनाकाल वि. सं. 1648/ ईस्वी सन् 15921.
इस सम्बन्ध में विस्तार के लिये द्रष्टव्य पं. दलसुख मालवणिया अभिनन्दन ग्रन्थ (वाराणसी 1992) में पृष्ठ 105-117 पर प्रकाशित "बृहद्गच्छ का संक्षिप्त इतिहास" नामक लेख.
2. मुनिजिनविजय, संपा. विविधगच्छीयपट्टावलीसंग्रह, सिंघी जैन ग्रन्थ माला, ग्रन्थांक 53, बम्बई 1961 ईस्वी, पृ. 52-55.
3. मुनिजयन्तविजय
अर्बुदाचलप्रदक्षिणा, यशोविजय जैन ग्रन्थमाला, भावनगर वि. सं.
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2004, q. 67-77.
अगरचन्दनाहटा "मडाहडागच्छ" जैनसत्यप्रकाश, वर्ष 21, अंक 3, पृ. 47-48.
4.
5.
R. C. Majumdar and A.D. Pusalkar, The Delhi Sultanate Bombay 1960 A.D., pp. 331,834.
"मड्डाहडगच्छ की परम्परा" जैनसत्यप्रकाश, वर्ष 20,
अगरचन्द भँवरलाल नाहटा अंक 5, पृ. 95-98.
7. चक्रेश्वरसूरि बृहद्गच्छ के प्रभावक आचार्य थे. उनके द्वारा वि.सं. 1187 से वि.सं. 1208 तक प्रतिष्ठापित कई जिनप्रतिमायें उपलब्ध हुई है. ग्रन्थप्रशस्तियों में भी इनका उल्लेख प्राप्त होता है.
मोहनलालदलीचन्द देसाई, जैनसाहित्यनो संक्षिप्त इतिहास बम्बई, 1935 ईस्वी, पृ. 280.
8. मुनिचतुरविजय - संपादक.
लींबडीस्य हस्तलिखित जैन ज्ञान भण्डार सूची पत्रम्. आगमोदयसमिति, ग्रन्थांक 58, बम्बई 1928 ईस्वी, क्रमांक 501.
9. वही. क्रमांक 571.
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