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प्राकृत की बृहत्कया "वसुदेवहिण्डी" में वर्णित कृष्ण
सन्दर्भ
"हिन्दी-साहित्य का इतिहास" (सत्रहवाँ पुनर्मुद्रण ), नागरी-प्रचारिणी सभा, काशी, पृ. 112 विशेष विवरण के लिए द्रष्टव्य -- "भारतीय संस्कृति में जैनधर्म का योगदान", डॉ. हीरालाल जैन, पृ. 142 मूल सम्बन्धी विशेष विवरण के लिए द्रष्टव्य -- डॉ. श्रीरंजन सूरिदेव कृत "वसुदेवहिण्डी" का मूल सह हिन्दी अनुवाद, प्र. पं. रामप्रताप शास्त्री चेरिटेबुल ट्रस्ट,
ब्यावर (राजस्थान)। 4. उत्तम क्षमा, मार्दव, आर्जव, शौच, सत्य, संयम, तप, त्याग, आकिंचन्य और ब्रह्मचर्य।
तुलनीय : उत्तराध्ययनसूत्र, अध्ययन 221 तेसिं च पहाणा राम-कण्हा निज्जल-सजलजलदच्छविहरा, दिवसयरकिरणसंगमावबुद्धपुंडरीयनयणा, गहवइसंपुण्णसम्मतरवयणचंदा, भयंगभोगोवमाणसुसित ट्ठसंघी, दीहघणुरहजुग्गवाद, पसत्थलक्खणकिय-पल्लवसुकुमालपाणिकमला, सिद्धिच्छुत्थइय-विउलसिरिणित्वय सुरेसरामुधतरिच्यमज्झा, पयाहिणावत्तनाहिकोसा, मद्यपत्थिव थिमिय संठियकठी, करिकरसरिसथिर-वट्टतोरु, सामुग्गणिभुग्गजाणुदेसा, गढसिर-हरिणजंघा समाहिय-सम-सुपइट्ठिय-तणु-तंबनस्वचलपा, तसलिलजल दखगहिर-सवणसुहरिभितवाणी, पृ. 77 समुद्देण किर से मग्गो दिण्णो, धणदेण णथरी णिम्मिया बारवती, रथणवरिसं च बुळं, पृ. 80 एषुत्वनेकमहिलात्तमरागो दक्षिणः कथितः । -- साहित्यदर्पण, 3135। सुयं य सच्चभामाए, विण्णविओ कण्हो रोक्तीए-- "संबो तुज्झच्चएण वलभवाएण ण देह में दारयस्स जीतिउं, निवारिज्जउ जइ तीरइ।... अहं पुत्तभंडाण खेल्लावणिया संकुत्ता, किं भे जीविएणं ? "ति जीहं पकड्ढिया। कहिंचि निवारिया य माण य कण्हेण-- "देवि ! अविणीवस्त्र लल्लं काहं निग्गह, वीसत्था भवसु त्ति", पृ.
106-107 10. विशेष द्रष्टव्य-- "भारतीय वाङ्मय में श्रीराधा", पं. बलदेव उपाध्याय, बिहार
राष्ट्रभाषा परिषद, पटना, पृ. 321 11. परिक्टइ वए। ततो कंसेण विणासकए कण्हं आसंकमाणेण य कसिणयक्यां आदिट्ठा
पत्ता नंदगोवगोडोठे। विसज्जिया खर-तुरय-बसहा। ते य जण मीलेंति। कण्हेण य
विणासिया, पृ. 369-3701 12. द्रष्टव्य-- महाभारत, शान्तिपर्व, अ. 81, श्लोक 5-111
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