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________________ रामचन्द्रसूरि और उनका साहित्य 8. कौमुदीमित्राणन्द -- दस अंकों के इस सामाजिक प्रकरण में जिनदासवणिक के पुत्र मित्राणन्द और कुलपति-पुत्री कौमुदी की प्रणय-कथा का वर्णन हुआ है। प्रारम्भ में नायक को नाना प्रकार के कष्ट उठाने पड़ते हैं, बाद में नायक-नायिका का मिलन होता है। कवि ने इसे प्रकरण बनाने का प्रयास अवश्य किया है, किन्तु उसे पूर्ण सफलता नहीं मिली। इसकी कथावस्तु अव्यवस्थित और अनाटकीय है। इस पर दशकुमारचरित का पर्याप्त प्रभाव है। 9. रोहिणीमृगांक -- यह रूपक अभी तक उपलब्ध नहीं हुआ। नाट्यदर्पण में उपलब्ध उद्धरणों ग स्पष्ट है कि इसमें राजकुमार मृगांक और रोहिणी की प्रणय-कथा वर्णित है।46 10 पनमाला --- नाट्यदर्पण47 में उपलब्ध एक मात्र उद्धरण के अनुसार इस नाटिका में राजा नवी नारी वनमाला की प्रणय-कथा चित्रित है। सम्भवतः यह कथा दमयन्ती के महादेवी बनने का की है। 11., यदविलास ..- रामचन्द्रसूरि का यदुविलास नाटक अभी तक उपलब्ध नहीं हुआ। कहा जाता है के इसका उल्लेख रघुविलास में हुआ है। रघुविलास के सम्पादक प्रो. जे. एच. दवे ने भी यही कहा है किन्तु उनके द्वारा सम्पादित रघुविलास में यदुविलास का कोई उल्लेख नहीं मिलता। पता नहीं उन्होंने किस प्रति के आधार पर ऐसा लिखा है। (ख) शास्त्रीयग्रन्थ -- रामचन्द्रसूरि के शास्त्रीय ग्रन्थों का परिचय निम्नवत् है-- 1. नाट्यदर्पण -- यह रामचन्द्रसूरि और गुणचन्द्रगणि की संयुक्त रचना है। इसमें भरत के नाट्यशास्त्र के आधार पर रूपक-रचना पर प्रकाश डाला गया है। सम्पूर्ण ग्रन्थ में 207. कारिकायें हैं, जो चार विवेकों में विभक्त है। संक्षिप्तता के कारण कहीं-कहीं कारिकाओं का अर्थ स्पष्ट नहीं होता, इसलिए ग्रन्थकारों ने विस्तृत वृत्ति भी लिख दी। यद्यपि नाट्यदर्पण भरत के नाट्यशास्त्र और अभिनव भारती पर ही आधारित है, तथापि कुछ स्थलों पर उनके मतों का परिष्कार भी किया गया है। यत्र-तत्र दशरूपक की अप्रत्यक्ष रूप से आलोचना भी की गयी है। इस ग्रन्थ की उल्लेखनीय विशेषता यह है कि इसमें ग्रन्थकारों ने अनेक मौलिक उद्भावनायें प्रस्तुत की है,49 यथा-- रूपक के द्वादश भेदों का निरूपण, रसों का सुखात्मक-दुःखात्मक वर्गों में विभाजन, सन्धि-रचना आदि। यदि नाट्यदर्पण को रामचन्द्रसूरि का कीर्तिस्तम्भ कहा जाय तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। 2. द्रव्यालंकार -- यह भी रामचन्द्र गुणचन्द्र की संयुक्त कृति है। इसमें जैन न्याय का विषद विवेचन हुआ है। सम्पूर्ण ग्रन्थ तीन अध्यायों में विभक्त है परन्तु अभी तक प्रथम अध्याय उपलब्ध नहीं हुआ। शेष दो अध्यायों की जो ताडपत्रीय प्रति मिली है, वह वि.सं. 1202 में लिपिबद्ध की गयी थी।50 3. हैमवृहद्वृत्तिन्यास -- यह हेमचन्द्राचार्य-प्रणीत सिद्धहैम व्याकरण पर आधारित न्यास ग्रन्थ है। (ग) काव्य -- रामचन्द्रसूरि-विरचित काव्यों का परिचय इस प्रकार है -- Jain Education International For Private & Pe18nal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525019
Book TitleSramana 1994 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1994
Total Pages78
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size4 MB
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