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है । वे समग्र साहित्य के ज्ञाता थे। उन्होंने महाकवियों द्वारा निबद्ध रूपकों का विधिवत् अध्ययन किया था । गीत, वाद्य, नृत्य एवं लोकस्थिति का उन्हें पूर्ण परिज्ञान था । उनकी रचनाओं में उपलब्ध 'अचुम्बितकाव्यतन्द्र' और 'विशीर्णकाव्यनिर्माणनिस्तन्द्र विशेषण भी उनके अगाध ज्ञान के द्योतक है। 6
रामचन्द्रसूरि अत्यन्त सुयोग्य विद्वान् एवं उच्चाचार सम्पन्न जैन सन्त थे । उनके उत्कृष्ट गुणों से प्रभावित होकर गुरु हेमचन्द्र ने अपने जीवनकाल में ही उन्हें अपना पट्टशिष्य नियुक्त कर दिया था। प्रभावकचरित से ज्ञात होता है कि एक बार सिद्धराज जयसिंह ने जिज्ञासावश हेमचन्द्र से पूछा कि आपके बाद इस पद को सुशोभित करने वाला योग्य शिष्य कौन सा है ? इसके उत्तर में हेमचन्द्र ने अपने योग्यतम शिष्य रामचन्द्र का नाम बतलाया । वस्तुतः अपने असामान्य विद्या-वैभव एवं बहु-आयामी व्यक्तित्व के कारण रामचन्द्रसूरि ही इस गरिमामय पद के लिए सर्वथा उपयुक्त थे। हेमचन्द्र के स्तर को देखते हुए यह सहज ही प्रतीत होता है कि उनके शिष्यों अर्थात् रामचन्द्र के सतीर्थ्यो की संख्या बहुत अधिक रही होगी परन्तु दुर्भाग्यवश अभी तक केवल सात के विषय में ही जानकारी प्राप्त हो सकी है, जिनके नाम इस प्रकार हैं-महेन्द्रसूरि, गुणचन्द्रगणि, वर्धमानगणि, देवचन्द्रमुनि, यशश्चन्द्रगणि, उदयचन्द्र और बालचन्द्रगणि ।
(ग) राजाश्रय
मध्यकाल में राजनीतिक उथल-पुथल एवं अन्य कारणों से साहित्य-सर्जन की गति अवरुद्ध होने लगी । अतः साहित्य एवं संस्कृति के संरक्षण के लिए कवियों को राजाश्रय की आवश्यकता प्रतीत हुई। दूसरी ओर बहुविश्रुत विद्वानों एवं कवियों को प्रश्रय प्रदान करना भी तत्कालीन शासकों के लिए प्रतिष्ठा का विषय बन गया था । हेमचन्द्र ने इस अवसर का भरपूर लाभ उठाया। उन्होंने गुजरात के चौलुक्यनरेश सिद्धराज जयसिंह की राजसभा में पहले स्वयं को प्रतिष्ठित किया और बाद में अपने प्रिय शिष्य रामचन्द्र के लिए राजाश्रय प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त किया ।
प्रभावकचरित से ज्ञात होता है कि हेमचन्द्र ने ही सिद्धराज से रामचन्द्र का परिचय कराया था। परिचय देते समय उन्होंने रामचन्द्र विरचित एक राजस्तुति भी सुनाई, जिसे सुनकर राजा बहुत प्रसन्न हुआ। बाद में उसने रामचन्द्र को हेमचन्द्राचार्य के चरण-कमलों में भक्तिभाव रखते हुए जैनेन्द्रशासन में एकाग्रचित होने का परामर्श भी दिया था । उपदेशतरंगिणी में इन दोनों से सम्बन्धित एक अन्य विवरण भी उपलब्ध है। इस ग्रन्थ के अनुसार एक बार ग्रीष्म ऋतु • में क्रीडोद्यान जाते समय सिद्धराज से रामचन्द्र की भेंट हो गयी। राजा ने पूछा कि गर्मी में दिन इतने बड़े क्यों हो जाते हैं ? रामचन्द्र ने तत्काल एक स्वरचित श्लोक सुनाया, जिसमें उत्तर के साथ राजा के प्रताप का भी वर्णन उपलब्ध था। राजा ने पत्तन नगर का वर्णन करने को कहा। उन्होंने अविलम्ब उत्प्रेक्षालंकार युक्त सुन्दर श्लोक में नगर का वैभव वर्णन कर दिया। इन राजभक्तिपूर्ण, कल्पनातिरंजित एवं सद्यः रचित पद्यों को सुनकर राजा बहुत प्रभावित हुआ और उसने सभी के समक्ष रामचन्द्र को 'कविकटारमल्ल की महनीय उपाधि से सम्मानित किया । प्रबन्धचिन्तामणि में भी यह प्रसंग संक्षिप्त रूप से वर्णित है । 10
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