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200 ऋग्वेद में अर्हत और ऋषभवाची ऋचायें : एक अध्ययन
सन्दर्भ
जैन, डॉ.सागरगल, जैन, बौद्ध और गीता का साधना मार्ग, राजस्थान प्राकृत भारती, जयपुर 1982, पृ भूमिका पृ. 6-10 निग्गंथ सक्क तावस गेरुय आजीव पंचहा समणा-पिण्डनियुक्ति 445, नियुक्तिसंग्रह सं.
विजय जिनेन्द्र सूरीश्वर श्री हर्ष पुष्पामृत जैन ग्रन्थ माला लाखाबाबल जामनगर 3. (अ) निग्गंथ धम्मम्मि इमा समाही, सूयगडो, जैन विश्वभारती लाउँनू 216 142
(ब) निगण्ठो नाटपुत्तो -- दीघनिकाय, महापरिनिव्वाण सुत्त-सुभधपरिव्वाजकवत्थुन 3123186 (स) निगंठेसु पि मे कटे इमे वियापटा होहंति -- जैन शिलालेखसंग्रह भाग-2, लेख
क्रमांक -1 4. इसिभासियाइं सुत्ताई - प्राकृत भारती अकादमी जयपुर, 1988
देखें-- भूमिका, सागरमल जैन, पृ.19-20 [सामान्यतया सम्पूर्ण भूमिका ही द्रष्टव्य है] 5. ज्ञातव्य है कि ऋग्वेद 1018514 में बार्हत शब्द तो मिलता है, किन्तु आर्हत शब्द नहीं
मिलता है यद्यपि अर्हन एवं 'अर्हन्तो शब्द मिलते हैं, किन्तु ब्राह्मणों, आरण्यकों आदिमें
आर्हत और बाहत दोनों शब्द मिलते हैं। देखें-- सुतं मेतं भन्ते-वज्जी यानि तानि वज्जीनं वज्जिचेतियानि अब्भन्तरानि चेव बाहिरानि तानि सक्कारोन्ति गरुं करोन्तिमानेन्ति पूजेन्ति।
..वज्जीनं अरहन्तेसु धम्मिका रक्खाआवरणगुत्ति, सुसंविहिता किन्ति अनागता च अरहन्तो विजितं आगच्छेय्युं आगता च अरहन्तो विजिते फासु विहरेय्यु। -- दीधनिकाय
महापरिनिव्वाणसुत्तं 3 11 14 (नालन्दा देवनागरी पालि सिरीज) 7. देखें-- संस्कृत-हिन्दी कोश - बृहत् ( वि. ) स्त्री. ती, बृहती नपुं. 1 वेद 2 सामवेद का
मंत्र, 3 ब्रह्म (सं. वामन शिवराम आप्टे, मोतीलाल बनारसीदास देहली-7 द्वि. सं. 1984, पृ. 720) देखें-- देवो देयान् यजत्विानरर्हन् ऋग्वेद 119411, 21311, 3, 2133110, 51712, 5152 15, 5187 15, 7118122, 10 199 17,
वैदिक पदानुक्रम-कोष, प्रथमखण्डः विश्वेश्वरानन्द वैदिक शोधसंस्थान, होशियार पुर, 1976, पृ. 518 9. जुधारिहं खलु दुल्लभं। -- आचारांग 111 1513
इमेण चेव जुज्झाहि, किं ते जुज्झेण बज्झओ - आचारांग 1 111513 10. (A) Radha Krishnan-Indian philosophy (Ist edition) Vol.1, p. 287.
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