________________
159
जैनधर्म और सामाजिक समता
____ 17. न जातिर्हिता काचित् गुणाः कल्याणकारणम्। व्रतस्थमपि चाण्डालं तं देवा ब्राह्मणं विदुः ।।
___ - पद्मचरित पर्व, 11/203 18. निर्गन्थप्रवचनभाष्य -- मुनि श्री चौथमल जी, पृ. 289 ____19. सक्खं खु दीसइ तवो विसेसो, न दीसई जाइ विसेस कोइ। सोवागपुत्ते हरिएस साहू, जस्से इदिड महाणुभागा।।
- उत्तराध्ययनसूत्र, 121 20. जहा पुण्णस कत्थति तहा तुच्छस्स कत्थति। __जहा तुच्छस्स कत्थति तहा पुण्णस्स कत्थति।
- आचारांग -- सं. मधुकर मुनि, 1/2/6/102 21 अ.
एक्का मणुस्सजाई रज्जुप्पत्तीइ दो कया उसमे। तिण्णेव सिप्पवणिए सावगधम्मम्मि चत्तारि।। संजोगे सोलसगं सत्त य वण्णा उ नव य अंतरिणो एए दोवि विगप्पा ठवणा बंभस्स णायव्वा ।। पगई चउक्कगाणंतरे य ते हंति सत्त वण्णा उ। आणंतरेसु चरमो वण्णो खलु होइ णायव्वो।।। अंबछग्गनिसाया य अजोगवं मागहा य सूया य। खत्ता(य) विदेहाविय चंडाला नवमगा हुति।। एगंतरिए इणमो अंबट्ठो चेव होइ उग्गो य। बिइयंतरिअ निसाओ परासरं तं च पुण वेगे।। पडिलोमे सुद्दाई अजोगवं मागहो य सूओ अ। एगंतरिए खत्ता वेदेहा चेव नायव्वा ।। बितियंतरे नियमा चण्डालो सोऽवि होइ णायव्वो। अणुलोमे पडिलोमे एवं एए भवे भेया।। उग्गेणं खत्ताए सोवागो वेणवो विदेहेणं। अंबट्ठीए सुद्दीय बुक्कसो जो निसाएणं।। सूएण निसाईए कुक्करओ सोवि होइ णायव्वो। एसो बीओ भेओ चउव्विहो होइ णायव्वो।।
___ - आचारांगनियुक्ति, 19-27 21ब. 'एगा मणुस्सजाई गाहा (19-8) एत्थ उसभसामिस्स
पुव्वभवजम्मणअहिसेराचक्कवट्टिरायाभिसेगाति, तत्थ जे रायअस्सिता ते य खत्तिया जाया अणस्सिता गिहवइणो जाया, जया अग्गी उप्पण्णो ततो य भगवऽस्सिता सिप्पिया वाणियगा जाया, तेहिं तेहिं सिप्पवाणिज्जेहिं वित्ति विसंतीती वइस्सा उप्पन्ना, भगवए पव्वइए भरहे अभिसित्ते सावगधम्मे उप्पण्णे बंभणा जाया, अणस्सिता बंभणा जाया माहणत्ति, उज्जुगसभावा धम्मपिया जं च किंचि हणंतं पिच्छंति तं निवारंति मा हण भो मा
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org