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________________ प्रो. सागरमल जैन 141 141 प्राचीन काल से ही महत्त्वपूर्ण प्रयत्न किये हैं। रासायनिक शस्त्रों का प्रयोग ___ आज विश्व में आणविक एवं रासायनिक शस्त्रों में वृद्धि हो रही है और उनके परीक्षणों तथा युद्ध में उनके प्रयोगों के माध्यम से भी पर्यावरण में असंतुलन उत्पन्न होता है तथा वह प्रदूपित होता है। इनका प्रयोग न केवल मानवजाति के लिए, अपितु समस्त प्राणि-जाति के अस्तित्व के लिए खतरा है। आज शस्त्रों की इस अंधी दौड़ में हम न केवल मानवता की, अपितु इस पृथ्वी पर प्राणी-जगत् की अन्त्येष्ठि हेतु चिता तैयार कर रहे हैं। भगवान महावीर ने इस सत्य को पहले ही समझ लिया था कि यह दौड़ मानवता की सर्व विनाशक होगी। आचारांग में उन्होंने कहा -- 'अत्थि सत्थं परेणपरं-नत्थि असत्थं परेणपरं10 अर्थात् शस्त्रों में एक से बढ़कर एक हो सकते हैं, किन्तु अशस्त्र (अहिंसा) से बढ़कर कुछ नहीं है। निःशस्त्रीकरण का यह आदेश आज कितना सार्थक है यह बतलाना आवश्यक नहीं है। यदि हमें मानवता के अस्तित्त्व की चिन्ता है तो पर्यावरण के सन्तुलन का ध्यान रखना होगा एवं आणविक तथा रासायनिक शस्त्रों के प्रयोग पर प्रतिबन्ध लगाना होगा। इस प्रकार हम देखते हैं कि जैनधर्म में पर्यावरण के संरक्षण के लिए पर्याप्त रूप से निर्देश उपलब्ध है। उसकी दृष्टि में प्राकृतिक साधनों, असीम दोहन जिनमें बड़ी मात्रा में भू-खनन, जल-अवशोपण, वायुप्रदूपण, वनों के काटने आदि के कार्य होते हैं, वे महारम्भ की कोटि में आते हैं, जिसको जैनधर्म में नरक-गति का कारण बताया गया है। जैनधर्म का संदेश है प्रकृति एवं प्राणियों का विनाश करके नहीं, अपितु उनका सहयोगी बनकर जीवन-जीना ही मनुष्य का कर्तव्य है। प्रकृति विजय के नाम पर हमने जो प्रकृति के साथ अन्याय किया है, उसका दण्ड हमारी सन्तानों को न भुगतना पड़े इसलिए आवश्यक है कि हम न केवल वन्य प्राणियों, पेड़-पौधों, अपितु जल, प्राणवायु, जीवन-ऊर्जा (अग्नि) और जीवन अधिष्ठान (पृथ्वी) के साथ भी सहयोगी बनकर जीवन जीना सीखे, उनके संहारक बनकर नहीं, क्योंकि उनका संहार प्रकारान्तर से अपना ही संहार है। जैन आचार्यों की पर्यावरण के प्रति विशेष रूप से वनस्पति जगत के प्रति कितनी सजगता रही है, इसका पता इस तथ्य से चलता है कि उन्होंने अपने प्रत्येक तीर्थंकर के साथ एक चैत्य-वृक्ष को जोड़ दिया और इस प्रकार वे चैत्य-वृक्ष भी जैनों के लिए प्रतीक रूप पूज्य बन गये। समवायांगसूत्र के अनुसार तीर्थंकरों के चैत्यवृक्षों की सूची इस प्रकार है।1 -- 1. ऋषभ -- न्यग्रोध ( वट) 7. सुपार्श्व -- शिरीष 2. अजित -- सप्तपर्ण 8. चन्द्रप्रभ -- नागवृक्ष 3. संभव -- शाल 9. पुण्यदन्त -- गाली 4. अभिनन्दन -- प्रियाल 10. शीतल -- पिलंखुवृक्ष 5. सुमति -- प्रियंगु 11. श्रेयान्स -- तिन्दुक 6. पद्मप्रभ -- छत्राह 12. वासुपूज्य -- पाटल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525018
Book TitleSramana 1994 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1994
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
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