________________
230
नियुक्ति साहित्य : एक पुनर्चिन्तन
38. उज्जेणी कालखमणा सागरखमणा सुवण्णभूमीए। इंदो आउयसेसं, पुच्छइ सादिव्वकरणं च।।
__ - उत्तराध्ययननियुक्ति, गाथा 119 39. अरहते वंदित्ता चउदसपुव्वी तहेव दसपुवी। एक्कारसंगसुन्तत्थधारए सव्वसाहू य।।
- ओघनियुक्ति, गाथा 1 40. श्रीमती ओघनियुक्ति, संपादक- श्री मद्विजयसूरीश्वर, प्रकाशन-- जैन ग्रन्थमाला,
गोपीपुरा, सूरत, पृ. 3-4 41. जेणुद्धरिया विज्जा आगासगमा महापरिन्नाओ। वंदामि अज्जवइरं अपच्छिमो जो सुअहराणं ।।
__ - गाथा, 769 42. आवश्यकनियुक्ति, गाथा, 763-774 43. अपुहुत्तपुहुत्ताइं निदिदसिउं एत्थ होइ अहिगारो। चरणकरणाणुओगेण तस्स दारा इमे हुंति ।।।
- दशवैकालिक नियुक्ति, गाथा 4 44. ओहेण उ निज्जुत्ति वुच्छं चरणकरणाणुओगाओ। अप्पक्खरं महत्थं अणुग्गहत्थं सुविहियाणं ।।
- ओघनियुक्ति, गाथा 2 45. आवश्यकनियुक्ति, गाथा 778-783 46. उत्तराध्ययननियुक्ति, गाथा 164-178 47. एगभविए य बद्धाउए य अभिमुहियनामगोए य। एते तिन्निवि देसा दव्वंमि य पोंडरीयस्स ।।
- सूत्रकृतांगनियुक्ति, गाथा 146 48. उत्तराध्ययन टीका शान्त्याचार्य, उद्धृत बृहत्कल्पसूत्रम् भाष्य, षष्ठ विभाग प्रस्तावना,
पृ.12 49. वही, पृ. 50. बृहत्कल्पसूत्रम्, भाष्य षष्ठविभाग, आत्मानन्द जैन सभा, भावनगर, पृ. 11 51. साव' त्यी उसमपुर सेय विया मिहिल' उल्लुगातीरं।
पुदिमंत रंजि दसपुर रहवीर पुरं च नगराइं।। चोद स सोल स बासा चोद्दसवीसुत्तरा' य दोण्णि सथा। अट्ठावीसो य दुवे पंचेव सया उ चोयाला।।
- आवश्यकनियुक्ति, गाथा 81-82 52. रहवीरपुरं नयरं दीवगमुज्जाण अज्जकण्हे अ। सिवभूइस्सुवहिमि पुच्छा थोराण कहणा य।।
- उत्तराध्ययननियुक्ति, गाथा 178
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org