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________________ बृहत्कल्पसूत्रभाष्य का सांस्कृतिक अध्ययन चिकित्सा में असफल होने पर एक बार वैद्य को भी मृत्युदण्ड दे दिया गया था। उस समय चोरों का बहुत आतंक था। वे साध्वियों का अपहरण कर लेते थे। सार्थवाहों के यान नष्ट कर डालते थे। साधुओं के उपाश्रय में जबर्दस्ती घुस जाते थे और उन्हें जान से मारने की धमकी देते थे। आलोच्य ग्रन्थ में उल्लेख है कि एक बार जैन साधु किसी चोर को पकड़कर राजा के पास दण्ड दिलाने के लिए ले गये थे। इसके अलावा इस अध्याय में सैन्य-व्यवस्था, राजप्रासाद एवं दुर्ग का वर्णन किया गया है। इस ग्रन्थ में चार प्रकार की भेरियों का भी वर्णन मिलता है जिन्हें विभिन्न अवसरों पर बजाया जाता था -- कौमुदिकी, संग्रामिकी, सन्नाहिका और अशिवोपशमिनी । भेरी बजाने वाले को भेरीपाल कहा गया है। सप्तम अध्याय कला एवं स्थापत्य से सम्बन्धित है। इसके अन्तर्गत चित्रकला, मूर्तिकला, स्थापत्य कला और संगीत कला का विवेचन किया गया है। चित्रकला के अन्तर्गत सदोष एवं निर्दोष चित्रकर्म का और मूर्तिकला के अन्तर्गत मुकुन्द व शिव की काष्ठ प्रतिमाओं को बनाने एवं पूजने का उल्लेख मिलता है। स्थापत्य कला के अन्तर्गत प्रासाद निर्माण, चैत्य-स्तप, द्वार, पताका, ध्वज, तोरण, पीठिका, आसन, छत्र का वर्णन किया गया है। बृहत्कल्पसूत्र में चार प्रकार के प्राकारों का वर्णन है -- पाषाणमय (द्रारिका ), इष्टिकामय (नन्दपुर), मृत्तिकामय (सुमनोमुखनगर) और खोडयानी काष्ठमय । संगीत कला विषयक सामग्री में स्वरों एवं बारह वाद्ययंत्रों के नाम ये हैं -- शंख, श्रृंग, शंखिका, खरमुही, पेया, पटह, भंभा (ढक्का), झल्लरी, भेरी, मृदंग, वीणा, मर्दल। अष्टम अध्याय उपसंहार स्वरूप है। प्रसतुत अध्ययन से निम्न विषयों पर विशेष प्रकाश पड़ता है। प्रस्तुत ग्रन्थ में व्यापार-वाणिज्य के सन्दर्भ में पाँच प्रकार के सार्थवाहों का विस्तृत विवरण प्राप्त होता है। सार्थवाहों के साथ यात्रा करना सुरक्षित था। इसीलिए जैन श्रमण-श्रमणियों को उनके साथ यात्रा करने का निर्देश दिया गया है। उस समय समाज में आठ प्रकार के वैद्य होते थे, जो समाज के अभिन्न अंग समझे जाते थे। आचार विषयक ग्रन्थ होने के कारण इसमें श्रमण-श्रमणियों को श्रमण धर्म के पालन करने में आवश्यक छूट दी गई है, जो अतिचार एवं प्रायश्चित्त के साथ अपवादों के रूप में उल्लिखित Jain Education International TOP For Private & egonal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525016
Book TitleSramana 1993 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1993
Total Pages64
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size3 MB
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