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सन्दर्भ
1. हम इसके लिए पूर्णरूप से 'धर्मशास्त्र का इतिहास, भाग 3, पृ. 1331-36
भारतरत्न पी. वी. काणे के आभारी हैं। प्र.-- हिन्दी समिति, राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन हिन्दी भवन, लखनऊ, द्वि. सं. 1975। उपासकदशांग, आगम प्रकाशन समिति, जैन स्थानक, व्यावर (राज.),
1980, पृ. 63 3. "तए णं से आणंदे समणोवासए इमेणं एमारुवेण उरालेणं, विउलेणं, पयत्तेणं
पग्गहियेणं तवोकम्मेण सुक्के जाव (लुक्खे, निम्मंसे, अटूठिचम्मावणद्धे
किडिकिडियाभूए किसे ) धमणिसंतए जाए", वही, पृ. 69 5. "तं अत्थि ता में उठाणे, कम्मे, बले, वीरिए, पुरिसक्कारपरक्कमे, सद्धा,
धिई, संवेग" -- वही, पृ. 70 6. "जाव य मे धम्मायरिये, धम्मोवएसए, समणे भगवं महावीरे जिणे सुहत्थी
विहरइ" -- वही, पृ. 70
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