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सन्दर्भ
सम्पादक, सी. डी. दलाल, प्रका. गा. ओ. सि. बड़ौदा, वर्ष 1917. शब्दार्थौ सहितौ काव्यम् । भामह, काव्यालंकार ।
कुन्तक, वक्रोक्तिजीवित, 1/17
श्रृंगार - वीर - शान्तानामेकोऽङ्गीरस इष्यते । सा. द. 6 / 317.
स च वीरो दानवीरो धर्मवीरो युद्धवीरोदयावीरश्चेति चतुर्विधः । सा.द.
वसन्तविलास, 11/70-71
वही, 11/63-65
वही, 5/75-77
वही, 10/37-38
वही, 7/13-14
वही, 8/57-59
अपरस्तु अभिलाष - विरहेर्ष्या- प्रवास - शाप हेतुक इति पंचविधः । का. प्र., चतुर्थ
उल्लास ।
13. वसन्तविलास, 14/17
14. वही, 14/30
15. वही, 5/32
16. वही, 5/43-44
17. वही, 5/54-55
18. वही, 5/90-91
19. वही, 5/108-9
20. वही, 9/1-4
21. वही, 7/8
22. वही, 11/46-48
23. वही, 14/40
24. वही, 14/ 44-46 25. नैषधचरित, 1 / 130-42
26. वसन्तविलास, 12/43
27. का. प्र., 4/35
28. वसन्तविलास, 1 /71-72
29. वही, 10/62-63
30. वही, 1/2
31. वही 1/1
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