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________________ वसन्तविलास महाकाव्य का काव्य-सौन्दर्य इस प्रकार वसन्तविलास महाकाव्य में यमक की अनुपम छटा दृष्टिगोचर होती है। श्लिष्ट पदों से अनेक अर्थों का अभिधान होने पर श्लेष अलंकार होता है।44 कवि ने महाकाव्य में श्लेष का प्रयोग अपेक्षाकृत कम किया है। प्रभातवर्णन के प्रसंग से उद्धृत यह उदाहरण प्रस्तुत है -- भानुर्भवानिव नवप्रसरत्यतापो, विक्रामति त्रिभुवनैकमतो वसन्त ! । चन्द्रस्तु शंख इव नश्यति शंखगौरं, हित्वा महोऽजनि महो विकसत्कलङ्कम् । यहाँ उदीयमान सूर्य की तुलना वस्तुपाल से तथा अस्तप्राय चन्द्रमा की तुलना वस्तुपाल के प्रतिद्वन्द्वी शंख से की गयी है। यहाँ प्रताप का अर्थ सूर्य के पक्ष में ज्योति है तथा वस्तुपाल के पक्ष में यश है। इसी प्रकार शंखगौर शब्द का अर्थ चन्द्रमा के पक्ष में शंख की तरह धवलता तथा शंख के पक्ष में शंख का गौरव' है जो नष्ट होकर कलंक (शंख के पक्ष में अपयश) को उत्पन्न कर रहा है। अतएव यहाँ श्लेष अलंकार है। जहाँ काव्य में अर्थ द्वारा चमत्कार उत्पन्न किया जाता है, वहाँ अर्थालंकार होता है। वसन्तविलास महाकाव्य में कवि ने उपमा, उत्प्रेक्षा, रूपक एवं अतिशयोक्ति का विशेष प्रयोग किया है। प्रथम सर्ग में कवि-प्रशंसा के समय पूर्णोपमा का सुन्दर प्रयोग हुआ है -- छायामयन्ते निरपायमेके परे परं पल्लवमल्ललन्ति। आस्वादयन्त्यन्यतरे फलानि मार्गदुमाणामिव सत्कवीनाम्।। उक्त श्लोक में सत्कवि उपमेय, मार्गद्रम उपमान, इव समतावाचक शब्द और अयन्ते, उल्लुलन्ति एवं आस्वादयन्ति क्रियायें सामान्य धर्म हैं। यहाँ उपमेय, उपमान, वाचक शब्द एवं साधारण धर्म-- इन चारों के शब्दतः उपात्त होने के कारण पूर्णोपमा है। रैवतक-वर्णन-प्रसंग के निम्नांकित श्लोक में कवि ने लुप्तोपमा द्वारा चमत्कार उत्पन्न किया है -- कण्ठेकालः साम्बुभिः शेषभागे भस्मोधूली व्यम्बुभिश्चाम्बुवाहैः । शीर्षप्रवल्लरीभिर्जटावान् साक्षादग्रे ते गिरीशो गिरीशः 147 इस प्रसंग में गिरीश ( रैवतक पर्वत ) उपमेय को गिरीश (भगवान् शिव ) उपमान के समान बतलाया गया है किन्तु, दोनों में समतावाचक शब्द लुप्त होने के कारण यहाँ वाचक लुप्तोपमा है। चन्द्रोदय प्रसंग के निम्न श्लोक में मालोपमा का प्रयोग हुआ है -- www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only sy only
SR No.525014
Book TitleSramana 1993 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1993
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size3 MB
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