SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 47
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अष्टपाहुड की प्राचीन टीकाएँ __ - डॉ. महेन्द्रकुमार जैन 'मनुज' पाहुड-ग्रन्थ आचार्य कुन्दकुन्द की प्रमुख रचनायें है। दंसण, सुत्त, चारित्र, बोह, भाव, मोक्ख, लिंग और सील इन आठ पाहुडों को 'अष्टप्राभृत तथा आदि के छह पाहुडों को 'षट्प्राभृत' नाम दिया गया। इन्हीं नामों से ये प्रकाशित हुए हैं। ___ अष्टपाहुड के अब तक प्रकाशित संस्करणों के सम्पादन में प्राचीन पाण्डुलिपियों का उपयोग प्रायः नगण्य हुआ है। इसलिए प्रायः प्रत्येक संस्करण के मूल प्राकृत पाठ में भिन्नता है। पाठ-भिन्नता के कारण अष्टपाहुड के विशिष्ट अध्ययन में काफी असुविधाएँ हुईं हैं। इन्हीं को ध्यान में रखते हुए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की रिसर्च एशोसिएट योजना के अन्तर्गत सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय के प्राकृत एवं जैनागम विभाग में मैंने अष्टपाहुड के सम्पादन का कार्य आरम्भ किया है। अभी तक के अनुसन्धान से मुझे अष्टपाहुड की 268 पाण्डुलिपियों की जानकारी मिली है। देश-विदेश के विभिन्न शास्त्रभंडारों में अष्टपाहुड की दर्शनप्राभृत (दंसणपाहुड), चारित्रप्राभृत, भावप्राभृत, भावनाप्राभृत (भावपाहुड), मोक्षप्राभृत (मोक्खपाहुड), लिंगपाहुड, सीलपाहुड, षट्प्राभृत (षडपाहुड) अष्टप्राभृत आदि नामों से पाण्डुलिपियाँ सुरक्षित हैं। आचार्य अमृतचन्द कुन्दकुन्द कृत ग्रन्थों के आद्य एवं प्रमुख टीकाकार हैं। दूसरे प्रमुख टीकाकार आचार्य जयसेन हैं। उक्त दोनों आचार्यों की समयसार, प्रवचनसार और पंचास्तिकाय पर टीकाएँ उपलब्ध हैं। किन्तु कुन्दकुन्द की नियमसार और अष्टपाहूड जैसी महत्त्वपूर्ण रचनाओं पर इन आचार्यों की टीकाएँ प्राप्त न होना विचारणीय है।। षट्पाहुड पर श्रुतसागर सूरि की संस्कृत टीका तथा अष्टपाहुड पर पण्डित जयचन्द छावड़ा की ढूंढारी भाषावचनिका ये दो टीकाएँ प्रकाशित हुई हैं। अनुसंधान के क्रम में विभिन्न शास्त्रभण्डारों, प्रकाशित-अप्रकाशित ग्रन्थसूचियों आदि के सर्वेक्षण से ज्ञात होता है कि अष्टपाहुड पर कन्नड, संस्कृत, दूंढारी, हिन्दी आदि भाषाओं में विभिन्न आचार्यों तथा विद्वानों ने अनेक टीकाएँ तथा पद्यानुवाद किए हैं। अब तक प्राप्त जानकारी के अनुसार पाहुडों पर तीन प्राकृत टीकाएँ, चार हिन्दी-ढूंढारी टीकाएँ और पद्यानुवाद किए गये हैं। कन्नड टीकाएँ बालचन्द, कनकचन्द और एक अज्ञात टीकाकार की है। संस्कृत टीकाएँ प्रभाचन्द्र महापण्डित, प्रभाचन्द्र, श्रुतसागरसूरि और एक अज्ञात विद्वान की हैं। दूंढारी-हिन्दी टीकाएँ और पद्यानुवाद भूधर, देवीसिंह छावड़ा, पं. जयचन्द छावड़ा और एक अज्ञात रचयिता द्वारा किये जाने के उल्लेख है। For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.525012
Book TitleSramana 1992 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1992
Total Pages82
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy