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________________ 30 श्रमण, जुलाई-सितम्बर, १९८२ परन्तु इनके प्रशिष्य विमलगणि ने अपने दादागुरु की रचना पर वि.सं. 1181/ई. सन 1125 में वृत्ति लिखी, जिसको प्रशस्ति में उन्होंने अपनी गुरु-परम्परा का सुन्दर परिचय दिया है वह इस प्रकार है : सर्वदेवसूरि जयसिंहसूरि चन्द्रप्रभसूरि [ दर्शनशुद्धि के रचनाकार] धर्मघोषसूरि विमलगणि [वि.सं. 1181/ई. सन् 1125 में दर्शनशुद्धिवृत्ति के रचनाकार] दर्शनशुद्धिबृहद्वृत्ति पूर्णिमागच्छीय विमलाण के शिष्य देवभद्रसूरि ने वि.सं. 1224/ई. सन् 1168 में अपने गुरु की कृति दर्शनशुद्धिवृत्ति पर बृहवृत्ति की रचना की। इसकी प्रशस्ति में उन्होंने अपनी गुरु-परम्परा इस प्रकार दी है : जयसिंहसूरि चन्द्रप्रभसूरि समन्तभद्रसूरि धर्मघोषसूरि विमलगणि देवभद्रसूरि । वि.सं. 1224/ई. सन् 1168 में दर्शनशुद्धिबृहद्वृत्ति के रचनाकार] प्रश्नोत्तररत्नमालावृत्ति यह पूर्णिमागच्छीय हेमप्रभसूरि की कृति है। रचना के अंत में वृत्तिकार ने अपनी गुरु-परम्परा और रचनाकाल का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है : Jan Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525011
Book TitleSramana 1992 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1992
Total Pages82
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size4 MB
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