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________________ प्रो. दयानन्द भार्गव ऐसा समझा जाता है कि महात्मा गांधी की जीवन दृष्टि पर श्रमण परम्परा का बहुत प्रभाव है किन्तु जिस प्रकार तपस्या अथवा वैराग्य के मूल्य को वैदिक परम्परा ने अपने ही रंग में ढाल कर अपनाया उसी प्रकार महात्म गांधी ने अहिंसा का उपयोग भी जिस ढंग से किया वह जैन परम्परा के लिये अपरिचित है। गांधी जी के अहिंसा के कुछ प्रयोग नमक सत्याग्रह जैसी घटनाओं में निहित हैं। यहां सत्ता के अनुचित आदेश के विरुद्ध अहिंसात्मक ढंग से कार्यवाही की गई है। इसी प्रकार हरिजनों के मंदिर-प्रवेश के प्रश्न को लेकर या नोआखली के साम्प्रदायिक दंगों को लेकर महात्मा गांधी का आमरण अनशन करना एक अभिनव प्रयोग है। उन प्रयोगों में महात्मा गांधी ने अन्याय के विरुद्ध अहिंसा का प्रयोग एक शस्त्र के रूप में किया है। अहिंसा का ऐसा उपयोग श्रमण परम्परा में महात्मा गांधी के पहले भी नहीं हुआ था और महात्मा गांधी के बाद भी नहीं हुआ। जैन परम्परा इतनी अहिंसक है कि वह किसी अनैतिक कार्य करने वाले को नैतिक दबाव डालकर भी नहीं रोकना चाहती। किन्तु समाज को केन्द्र में रखने वाली वैदिक परम्परा में महात्मा गांधी ने अहिंसा का उपयोग नैतिक दबाव के रूप में करने का नया मार्ग प्रशस्त किया। निष्कर्ष यह है कि अहिंसा, समता, वैराग्य, अपरिग्रह आदि जैन परम्परा के अनेक मूल्य वैदिक साहित्य में प्रतिबिम्बित हुए किन्तु वैदिक परम्परा ने इन सब मूल्यों को यथावत् ग्रहण न करके अपने ढंग से ढालकर ग्रहण किया और इस प्रकार वैदिक परम्परा अपना पृथक् ही अस्तित्व बनाये रख सकी। फिर भी सामासिक भारतीय संस्कृति के निर्माण में श्रमण परम्परा के योगदान की उपेक्षा नहीं की जा सकती लेकिन साथ ही यह भी नहीं भुलाया जा सकता कि वैदिक साहित्य ने जैन परम्परा के मूल्यों का नया अर्थ दिया और अहिंसा, समता, वैराग्य, अपरिग्रह आदि शब्दों का प्रयोग यद्यपि वैदिक तथा श्रमण जैन साहित्य में समान रूप से हुआ किन्तु इन शब्दों का तात्पर्य दोनों परम्पराओं में एक ही नहीं है। योगसूत्र जैसे ग्रन्थ अवश्य इसके अपवाद हैं जहां अहिंसा की अवधारणा वही है जो जैन परम्परा में है। - ऋषभदेव प्रतिष्ठान दिल्ली द्वारा आयोजित भारतीय साहित्य में श्रमण परम्परा-संगोष्ठी, दिनांक 25,27 व 28 जनवरी, 1990 •आचार्य एवं अध्यक्ष, संस्कृत विभाग, जोधपुर विश्वविद्यालय, जोधपुर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525011
Book TitleSramana 1992 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1992
Total Pages82
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size4 MB
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