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________________ ७७ त्रि० श०. च० में सांस्कृतिक जीवन निष्क'-ग्रन्थ में कण्ठाहार के रूप में इसका उल्लेख है। एकावली-अमरकोश में एकावली को मोतियों की इकहरी माला कहा है। वी. एस. अग्रवाल के अनुसार गुप्तकालीन शिल्प की मूर्तियों और चित्रों में इन्द्रनील की मध्य गुरिया सहित मोतियों की एकावली पायी जाती है। यह घने मोतियों को गूंथकर बनायी जाती थी। यशस्तिलक में उज्ज्वल मोती को मध्य मणि के रूप में लगाकर एकावली बनाने का उल्लेख है।" कराभूषण अंगद ५-- इसे भुजाओं पर बाँधा जाता था। इसको स्त्री-पुरुष दोनों ही बाँधते थे। केयूर--स्वर्ण और रजत निर्मित केयूर स्त्री-पुरुष दोनों ही अपनी भुजाओं पर धारण करते थे। भुजबंध-हाथों में बाँधा जाने वाला भुजबन्ध का उल्लेख ग्रन्थ में कई स्थानों पर हुआ है । कड़ा - यह हाथी के मूल में पहना जाता था। महापुराण में कड़े के लिए दिव्य कटक शब्द का प्रयोग हुआ है ।। अंगूठी'°— ग्रन्थ में अंगूठी के लिए मुद्रा शब्द व्यवहृत है। यह हाथ की अंगुलियों में पहना जाता था। १. त्रिषष्टि २।४।१२२ २. वही २।१।३०२ ३. हर्षचरित : एक सांस्कृतिक अध्ययन पूर्वोक्त पृ० १०२ ४. यशस्तिलक पूर्वोक्त पृ० २८८ ५. त्रिशष्टि २।६।१०७ ६. वही २१६।२१, २१६।४२६ ७. वही १।६।७२४-७३० ८. वही १।६७२४-७३०, २।२।१३६ ९. महापुराण २९।१६७ १०. त्रिषष्टि १।६।७२४-७३० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525010
Book TitleSramana 1992 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1992
Total Pages88
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size5 MB
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