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________________ प्राकृत जैनागम परम्परा में गृहस्थाचार बार-बार अभ्यास करता है। इसी अभ्यास के कारण ये व्रत शिक्षाबत कहलाते हैं। अणुव्रत और गुणव्रत एक बार किसी नियत समय तक ग्रहण किये जाते हैं, अर्थात् अणुव्रतादि जीवन भर या किसी अन्य नियत काल तक को लिए जाते हैं, जबकि शिक्षाव्रत बार-बार ग्रहण किये जाते हैं; क्योंकि ये कुछ समय के लिए ही होते हैं। शिक्षाव्रत चार प्रकार के बताए गये हैं-इनके नाम एवं क्रम में आचार्यों में भिन्नता पायी जाती है । भगवती आराधना में लिखा है-भोगोपभोगपरिमाण, सामायिक, प्रोषधोपवास और अतिथिसंविभाग ये चार शिक्षावत हैं। आगे कहा गया है कि इन व्रतों को पालने वाला गृहस्थ सहसा मरण आने पर भी, जीवित रहने की आशा के कारण जिसके बन्धुगण ने दीक्षा लेने की अनुमति नहीं दी है, ऐसे प्रसंग में वह घर में सल्लेखना धारण करता है। अर्धमागधी आगम परम्परा में सामायिक, देशावकाशिक प्रोषधोपवास और अतिथिसंविभाग को शिक्षाव्रत माना गया है । कुन्दकुन्द ने चारित्तपाहुड में सामायिक, प्रोषध, अतिथि पूजा और सल्लेखना को शिक्षाव्रतों में गिनाया है।३ रत्नकरण्डक में देशावकाशिक, सामायिक, प्रोषधोपवास और वैयावत्य ये चार शिक्षाबत माने गये हैं। उपासकदशांग में गुणवतादि सातों को शिक्षाव्रत कहा गया है।" दिग्वत दिग्वत का अर्थ है-दिशा सम्बन्धी नियम । यह प्रथम गुणवत है। अपनी त्यागवृत्ति के अनुसार व्यवसाय आदि प्रवृत्तियों के निमित्त दिशाओं में गमनागमन विषयक मर्यादा निश्चित करना दिग्वत परि१. भ० आ० २०७६-८२; स० सि. ७।२१ २. जैनाचार पृ० ११३ ३. चा० पा०, गा० २६ ४. रत्नकरण्डक श्रावकाचार ९१ ५. तएणं से आणंदे गाहावई समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए पंचाणुव्व इयं सत्तसिक्खावइयं-दुवालसविहं सावयधम्म पडिवज्जति । उवासग० १।४५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525010
Book TitleSramana 1992 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1992
Total Pages88
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size5 MB
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