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________________ श्रमण, अप्रैल-जून १९९२ आचार्य हरिप्रभसूरि द्वारा वि० सं० १३४९ / ई० सन् १२९३ और वि० सं० १३५९/ई० सन् १३०३ में प्रतिष्ठापित एक-एक जिनप्रतिमायें मिली हैं, जो क्रमशः सलखणपुर' और घोघा के जिनालयों में आज संरक्षित हैं । वि० सं० १३४९/ई० सन् १२९३ के लेख में प्रतिष्ठापक आचार्य हरिप्रभसूरि की गुरु-परम्परा दी गयी है, जो इस प्रकार है देवसूरि हरिभद्रसूरि हरिप्रभसूरि [ वि० सं० १३४९ / ई. सन् १२९३ में महावीर स्वामी की प्रतिमा के. प्रतिष्ठापक ] , जालिहरगच्छ से सम्बद्ध छठी अभिलेख वि० सम्वत् की चौदहवीं शती के अन्तिम दशक का है । लेख का एक अंक नष्ट हो गया है, शेष ३ अंक स्पष्ट पढ़े जा सके हैं। मुनिविजयधर्मसूरि ने इस लेख की वाचना इस प्रकार दी है स (सं). १३९-वैशाख शुदी (दि) ३ मोढवंशे श्रे० पाजान्वये व्य० देवा सुत व्य० मुजालभार्याये (यर्या) व्य० रत्नदिव्या आत्मश्रेयोई (5) थं श्रीनेमिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्टी (ष्ठि) तं श्रीजाल्योद्धरगच्छे. श्रीसर्वाणंदसु (सू) री (रि) संताने श्रीदेवसूरी (रि) पट्टभूषणमणिप्रभु श्रीहरी (रि) भद्रसूरी (रि) शिष्ये (?) सुविहितनामधेयभट्टारकश्रीचंद्रसिंहसूरी (रि) पट्ट (ट्टा) लंकरण श्रीविबुधप्रभसूरीणां श्रीपाजाब (व) सहीकायां भद्रं भवतु। इस लेख में जाल्योधरगच्छ के आचार्य विबुधप्रभसूरि की विस्तृत गुरु परम्परा दी गयी है, जो इस प्रकार है १. प्राचीन जैन लेख संग्रह, लेखांक ४८४ २. सोमपुरा, पूर्वोक्त ३. विजयधर्मसूरि-संपा० प्राचीनलेखसंग्रह (भावनगर १९२७ ई०) लेखाङ्क Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525010
Book TitleSramana 1992 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1992
Total Pages88
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size5 MB
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