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श्रमण, जनवरी-मार्च १९९२
लिए अहिंसा को अनिवार्य नियम के रूप में अपनाना होगा । अहिंसा मानव के साध्य और साधनों की कसौटी है और सभी साध्यों और साधनों का अहिंसात्मक होना अनिवार्य है। अहिंसा मानव कर्म के मानवोचित होने का दर्शन है। भारतीय दर्शन में अहिंसा प्रथम संयम है। मानवीय हिंसा मानव समाज के सहयोग के बिना संभव नहीं है इसलिए अहिंसा के सिद्धान्त को मानव जीवन की पद्धति बनाना अनिवार्य है, मानव पर्यावरण का एक घटक है और विज्ञान उसके जीवन का एक साधन है । अतः पर्यावरण के प्रदूषित होने का और उसके असंतुलित होने का कारण बनने वाले साधनों में कमी करना अति आवश्यक है । साथ ही मानव को अपने पर्यावरण के प्रति सहिष्णुता के भाव को जागृत करना होगा, जो अहिंसा के भाव द्वारा ही संभव है । अतः अपने पर्यावरण का सम्यक् एवं अहिंसात्मक उपयोग करना ही मानव मात्र का कर्तव्य है, उसका धर्म है।
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