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________________ श्रमण एवं ब्राह्मण परम्परा में 'परमेष्ठी' पद ___-साध्वी डा० सुरेखा श्री* 'पंच परमेष्ठी' जैन धर्म की आधारशिला कही जाती है। यह 'नमस्कार मंत्र' का अपर नाम है । अर्हन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय एवं साधु-ये पंच पद परमेष्ठी रूप से ख्याति प्राप्त हैं । जैन धर्म के सभी सम्प्रदाय चाहे दिगम्बर हो या श्वेताम्बर सभी ने एक स्वर से इसकी महिमा गाई है। अनादिनिधन और शाश्वत इस मंत्र का गौरव अद्यापि अक्षण्ण और यथावत् है। यहाँ शोध का विषय यह है कि यह नमस्कार महामंत्र परमेष्ठी पद पर कब स्थापित हुआ? ये पंच पद परमेष्ठी संज्ञा पर कैसे अधिरूढ़ हुए ? ___ आगमों में नमस्कार मंत्र के स्थान पर 'पंच मंगल महाश्रुतस्कंध' ऐसा उल्लेख मिलता है। श्वेताम्बर आगमों में सर्वप्रथम इसका उल्लेख 'व्यास्याप्रज्ञप्ति' (भगवती सूत्र), प्रज्ञापना, पश्चात् महानिशीथ में किया गया है। व्याख्याप्रज्ञप्ति और प्रज्ञापना में मात्र मंगल के रूपउल्लेख हैं । जबकि महानिशीथ सूत्र में इसका विस्तृत विवेचन किया गया है । भगवती सूत्र के वृत्तिकार श्रीमद् अभयदेव सूरि ने इस पर विस्तृत टीका की है। इस टीका में इसे पंचपरमेष्ठी पद से स्थानस्थान पर सम्मानित किया है। महानिशीथ सूत्र जो कि आगमान्तर्गत ख्याति प्राप्त है, वहाँ इसे 'पंचमंगल महाश्रुतस्कंध' से सम्बोधित किया है ।' मात्र एक ही स्थल है जहाँ परमेष्ठी शब्द प्रयुक्त है । परन्तु वहाँ इन पाँचों पदों को परमेष्ठी रूप प्राप्त नहीं होता, मात्र अर्हन्त पद के साथ ही परमेष्ठी पद प्रयुक्त किया है। इससे तात्पर्य यह निकाला *L. D. Institute of Indology, Ahmedabad १. महानिशीथ सूत्र, अ० ३ सू० १३ २. वही अ० ३ सू० १४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525009
Book TitleSramana 1992 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1992
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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