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( १२० ) जैन निर्देशिका शीर्षक से यह भ्रम होता है कि इसमें वर्धवान जिले के जैन सदस्यों की सूचना मात्र है परन्तु इसमें जैन विद्या से सम्बन्धित १२ लेख भी दिये गये हैं जो जैन विद्या के विविध पहलुओं पर लिखे गये हैं। इसमें उपाध्याय अमरमुनि, आचार्य श्री रजनीश, श्री रामधारी सिंह दिनकर, स्व० मुनि महेन्द्र कुमार जी प्रथम, युवाचार्य महाप्रज्ञ आदि विभूतियों द्वारा लिखे गये लेख उपलब्ध हैं। जो इस निर्देशिका की मूल्यवत्ता में चार चांद लगा देते हैं। इन लेखों के होने से निर्देशिका की उपयोगिता सूचनात्मक मात्र नहीं रह जाती
और यह पाठकों के लिए उच्चस्तरीय बौद्धिक सामग्री भी उपलब्ग्र कराती हैं।
पत्रिका की रूप सज्जा अत्यन्त सुरुचि पूर्ण एवं मुद्रण उच्च-- कोटि का है, निर्देशिका संग्रहणीय है ।
रयणसार-आचार्य कुन्दकुन्द अनु० आर्यनन्दी मुनि; प्रकाशक : श्रुतभण्डार ग्रंथ प्रकाशन समिति फलटण । सोलापुर, महाराष्ट्र आचार्य शान्तिसागर दि० जैन जिनवाणी जीर्णोद्धार ग्रन्थमाला पुष्प २१, आकार डबल क्राउन १६ पृ० पेपर बैक, पृ० १०-७० मूल्य स्वाध्याय। ___आचार्य कुन्द-कुन्द की रचनाओं के रूप में मान्य ‘रयण सार' के इस संस्करण में मूल मराठी अनुवाद सहित प्रकाशित है । इस संस्करण में १७१ गाथायें दी हुई हैं। जबकि डा० देवेन्द्र शास्त्री सम्पादित (कुन्द-कुन्द भारती दिल्ली से १९७५ में प्रकाशित संस्करण में १५६ गाथायें उपलब्ध हैं, और श्री मद्रराजचन्द्र, स्वाध्याय मन्दिर देवलाली से प्रकाशित संस्करण में १६७ गाथायें हैं।
यह ग्रन्थ व्यवहार रत्नत्रय का प्रतिपादन करता है। मुख्य रूप से यह आचार शास्त्र का ग्रंथ है। इसमें शुद्ध आत्म-तत्व को लक्ष्य में रखकर गृहस्थ और मुनि के संयम-चरित्र का निरूपण किया गया है। प्रकाशक ने मराठी अनुवाद प्रकाशित कर प्रशंसनीय कार्य किया है।
--डा० अशोक कुमार सिंह
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