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________________ ( ११८ ) जिनमें जीव की अनादिकालीन भलें और उनके फल, धर्म प्राप्त करने के उपाय, वस्तु का स्वरूप, सम्यक् दृष्टि की भावना, सम्यकचारित्र तथा महावत, द्रव्याथिकनय से निश्चय नय का स्वरूप तथा उसके आश्रय से होने वाली शुद्ध पर्याय एवं पर्यायार्थिकनय से निश्चय और व्यवहार का स्वरूप अथवा निश्चय तथा व्यवहार पर्याय का स्वरूप आदि विषयों का प्रतिपादन किया गया है। --डा० इन्द्र श चन्द्र सिंह प्राचीन अर्ध मागधी की खोज में--प्रो० के० आर० चन्द्र, भू. पू० अध्यक्ष, प्राकृत पालि विभाग, गुजरात युनिवर्सिटी अहमदाबाद; प्रकाशक: प्राकृत विद्या विकास फण्ड अहमदाबाद १५; वितरक पार्श्वप्रकाशन, निशापोलनाका झवेरीवाड रिलीफरोड, अहमदाबाद १, पृ० ११२-१-१८; मूल्य रु० ३२ = ०० डा० के० आर० चन्द्र-प्राकृत भाषा के मूर्धन्य विद्वान है। उनकी यह कति अर्धमागधी के प्राचीन स्वरूप को उजागर करने का महत्त्वपूर्ण प्रयास है । यद्यपि जैनागमों की भाषा अर्धमागधी कही जाती है किन्तु उनके सम्पादन काल (वाचना काल) में उन पर महाराष्ट्री का इतना प्रभाव आ गया है कि आज उनको उनके प्राचीन मूल स्वरूप में स्थिर करना एक कठिन समस्या है। इन पाठ भेदों के कारण कहीं. कहीं महत्त्वपूर्ण अर्थ भेद भी हो गया है जैसे खेतन्न के प्रचलित खेयन्न/खेयण्ण रूप के कारण उसका अर्थ 'क्षेत्रज्ञ' (आत्मज्ञ) से बदलकर 'खेदज्ञ' हो गया है। विद्वान लेखक ने प्रचीन आगमों की उपलब्ध हस्तप्रतों एवं प्रकाशित संस्करणों के तुलनात्मक अध्ययन के आधार पर प्राचीन अर्धमागधी का स्वरूप क्या रहा होगा इसका गम्भीर विश्लेषण प्रस्तुत किया है। जो लोग प्राकृत भाषा के अध्ययन से जुड़े हुए हैं उनके लिये यह कृति पठनीय है। ग्रन्थ की साजसज्जा और मुद्रण चाहे सामान्य हो किन्तु उसकी विषयवस्तु गहन अध्ययन और शोधदृष्टि से सम्पन्न है। ऐसे प्रकाशन के लिये लेखक और प्रकाशक बधाई के पात्र है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525009
Book TitleSramana 1992 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1992
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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