________________
श्रमण, जुलाई-सितम्बर, १९९१ और तप के द्वारा पूर्वकृत कर्मों का क्षय करके परिनिवृत्त हो जाते हैं।'
सिद्ध पद की सामर्थ्य किसमें है ? अर्थात् सिद्ध-पद के योग्य कौन हैं –'सदा उपशान्त, ममत्व रहित, अकिंचन, सविज्ञ, अध्यात्म विद्या के अनुगामी, जगत् के जीवों के त्राता और यशस्वी साधक शरद् ऋतु के निर्मल चंद्रमा के समान सर्वथा विमल ( कर्म-मल से रहित ) होने पर सिद्धि अथवा विमानों को प्राप्त करते हैं।'२ 'जन्म-मरण से मुक्त नरक आदि सब पर्यायों को सर्वथा त्याग देने वाला शाश्वत ( अजर-अमर ) सिद्ध हो जाता है ।
सिद्धत्व की प्रथम शर्त है कर्म-क्षय । कर्म-क्षय हेतु कथन है-'दुष्ट भावों से आचरित तथा दुष्पराक्रम से अजित पूर्वकृत पापकर्मों का फल भोग लेने पर ही मोक्ष होता है। बिना भोगे मोक्ष नहीं होता अथवा तप के द्वारा (उन पूर्व कर्मों का) क्षय करने पर भी मोक्ष होता है।'४ मोक्ष का अधिकारी कौन नहीं है ? कहा गया है कि- 'जो मनुष्य चण्ड (क्रोधी) है, जिसे अपनी बुद्धि और ऋद्धि का गर्व है, जो पिशुन ( चुगलखोर ) है, जो ( अयोग्य कार्य में ) साहसिक है, जो गुरु-आज्ञापालन से हीन है, जो धर्म से अदष्ट (अनभिज्ञ) है, जो विनय में निपूण नहीं है, जो संविभागी नहीं है, उसे कदापि मोक्ष प्राप्त नहीं होता।'५ ___ मोक्ष का हेतु क्या है ? वह कौन-सा उपाय है जिससे सिद्धत्व सिद्ध होता है ? 'धर्म का मूल विनय है और उस धर्म रूपी वृक्ष का परम अंतिम अथवा उत्कृष्ट-रस युक्त फल मोक्ष है । विनय के द्वारा कीर्ति, श्रुत तथा निःश्रेयस की प्राप्ति होती है । आत्म-शुद्धि द्वारा विकास के आरोह-क्रम का वर्णन सुन्दर रीति से प्रस्तुत करते हुए, अणगार धर्म से सिद्धि-गति में सिद्धत्व प्राप्त होने की प्रक्रिया का निरूपण किया
१. दशवकालिक ३।१५ २. वही, ६।६८ ३. वही, ९।४।१४ ४. वही, प्रथम चूलिका गा० १८ ५. दश० ९/२।२२ ६. वही ९।२।२
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org