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________________ कोटिशिला तीर्थ का भौगोलिक अभिज्ञान * –डा० कस्तूरचन्द जैन जैन-दर्शन और तत्त्वज्ञान की भक्तिपरक अभिव्यक्ति निर्वाणक्षेत्र की पूजा-परंपरा में दिखाई देती है। निर्वाण-क्षेत्र वे स्थल हैं, जहाँ से तीर्थंकरों और सिद्धों को निर्वाण प्राप्त हुआ है। इन्हें हम सिद्धक्षेत्र भी कहते हैं। ये सिद्धक्षेत्र ही जैन परम्परा के वास्तविक तीर्थ हैं । अष्टापद, चम्पापुरी, उर्जयन्त, पावापुरी और सम्मेद शिखर-ये पाँच स्थान चौबीस तीर्थंकरों के निर्वाण-स्थल हैं तथा आर्यखंड के अगणित सिद्धों की सिद्ध भूमियों का अन्तर्भाव "कोटिशिला'' में होता है । कोटिशिला केवल एक प्रतीक सत्ता है अथवा अन्य सिद्ध-क्षेत्रों की भाँति उसकी अपनी कोई भौगोलिक पहचान है-यह प्रश्न शताब्दियों से अब तक अनुत्तरित ही रहा है । "अभिधानराजेन्द्र'' में गंगा, सिंधु, वैताढ्य आदि शाश्वत पदार्थों की तरह कोटिशिला को शाश्वत कहा गया है। भरत क्षेत्र में हिमालय से निकलकर गंगा और सिन्धु नदियाँ, पूर्व और पश्चिम में समुद्र की ओर बहती हैं। मध्य में वैताढ्य, विजयार्ध अथवा विन्ध्य पर्वत है। गंगा, सिन्धु और विन्ध्य के द्वारा भरत क्षेत्र के छह खंड हो गये हैं। दुषमा-सुषमा नामक चौथे काल में, भरत क्षेत्र में ६३ शलाकापुरुष हुए, जिनमें २४ तीर्थंकर, १२ चक्रवर्ती, ९ बलदेव, ९ वासुदेव और ९ प्रति-वासुदेव सम्मिलित हैं। सोलहवें तीर्थङ्कर शान्तिनाथ से लेकर इक्कीसवें तीर्थंकर नमिनाथ तक-छह तीर्थङ्करों के तीर्थकाल में करोड़ों मुनि कोटिशिला से मुक्त हुए हैं। त्रिपृष्ठ आदि नव वासुदेव क्रमशः श्रेयांस, वासुपूज्य, विमल, अनन्त, धर्म, अर, मल्लि, मुनिसुव्रत और नेमिनाथ के तीर्थकाल में हुए थे और उन सबने अपने बाहुबल की परीक्षा के लिये कोटिशिला को ऊपर उठाने का उपक्रम किया था। अन्तिम नारायण कृष्ण ने कोटिशिला को भूमि से चार अंगुल तक ऊपर उठाया था। पुराणेतिहास में कोटिशिला भरतक्षेत्र के मध्य में उसी प्रकार परिकल्पित है, जैसे जम्बूद्वीप के मध्य में मेरु की रचना मानी गई है। मन्दार पर मेरु की भांति वैताढ्य पर कोटिशिला सुशोभित है । जैसे * अध्यक्ष, हिन्दी विभाग, शासकीय तिलक महाविद्यालय कटनी, म०प्र० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525007
Book TitleSramana 1991 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1991
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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