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________________ अपभ्रंश भाषा के जैन पुराण और पुराणकार 'किया है । जिनमें पुराण साहित्य के अन्तर्गत रइधू कृत 'महापुराण' और 'मेहेसरचरिउ' अपर नाम आदिपुराण का उल्लेख भी मिलता है' । पन्द्रहवीं शताब्दी के कवियों में मुनि यशः कीर्ति का नाम भी उल्लेखनीय है । यशकीर्ति काष्ठसंघ माथुरगच्छ के गुणकीर्ति के के पट्टशिष्य थे | डा० विद्याधर जोहरापुरकर ने इनका समय संवत् १४८६-१४९७ माना है । पर गोपाचल के मूर्तिलेखों में इनका निर्देश वि० १५१० तक पाया जाता है अतएवं इनका समय वि० सं० पन्द्रहवीं शती का अन्तिम भाग तथा सोलहवीं शती का पूर्वभाग है । मुनि यश: कीर्ति भट्टारक द्वारा रचित अपभ्रंश भाषा में दो पुराण उपलब्ध होते हैं - हरिवंश पुराण और पाण्डव पुराण । १. हरिवंश पुराण - इस हरिवंश पुराण में १३ सन्धियाँ (सर्ग ) और २७१ कडवक हैं जिनमें हरिवंश की उत्पत्ति आदि का वर्णन किया गया है । यह पुराण वि० सं० १५०० या १५२० में रचित है । यह योगिनीपुर, दिल्ली में अग्रवालवंशी व गगंगोत्री दिउढा साहू की प्रेरणा से लिखा गया था । ५३ यशःकीर्ति कृत इस हरिवंश पुराण की हस्तलिखित प्रतियाँ दिल्ली पंचायती दिगम्बर जैन मन्दिर, जयपुर के दिगम्बर जैन तेरहपन्थी बड़ा मन्दिर दिगम्बर जैन पटोदी मन्दिर, ठोलियों का दिगम्बर जैन शास्त्र भण्डार, आमेर शास्त्र भण्डार, नागौर का दिगम्बर जैन सर - स्वती भवन, उदयपुर के दिगम्बर जैन मन्दिर, सम्भवनाथ, और ब्यावर के सरस्वती भवन में उपलब्ध हैं । २ पाण्डव पुराण - यशःकीर्ति ने पाण्डव पुराण की रचना वि० सं० १४९७ में की है । इस पुराण में ३४ सन्धियाँ हैं जिनमें पांचों पाण्डवों पृ० ४९ १. महाकवि रइधू के साहित्य का आलोचनात्मक परिशीलन, २. भट्टारक सम्प्रदाय, पृ० २४६ ३. तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा, भाग ३, पृ० ४१० ४. वही, पृ० ४११ ५. भारतीय संस्कृति के विकास में जैन कवियों का योगदान, पृ० १५५ ६. अपभ्रंश भाषा और साहित्य की शोध प्रवृत्तियाँ, पृ० १७४- १७५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525007
Book TitleSramana 1991 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1991
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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