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पंचपरमेष्ठि मन्त्र का कर्तृत्व और दशवकालिक हन्ताणं' नमस्कार मंत्र के प्रथम पद को ग्रहण किया है। इससे इतना तो अवश्य कहा जा सकता है कि दशवैकालिक रचना के समय नमस्कार मंत्र की रचना हो चुकी होगी।
दशवैकालिक सूत्र की रचना एवं विषय वस्तु के सम्बन्ध में नियुक्तिकार का कथन महत्त्वपूर्ण है । अपने पुत्र-मुनि'मणग' के आत्मकल्याणार्थ पूर्व-श्रुत से उद्धार करके इस सूत्र की रचना की गई है । वे आगे कहते हैं कि इसका चतुर्थ अध्ययन आत्मप्रवाद पूर्व से, पाँचवाँ अध्ययन कर्मप्रवाद पूर्व से, सातवाँ अध्ययन सत्यप्रवाद पूर्व से,अवशेष सभी अध्ययन प्रत्याख्यान पूर्व की तृतीय वस्तु से उद्धत किये गये हैं। अगली गाथा में नियुक्तिकार ने दशवैकालिक का निर्गहण गणिपिटक द्वादशांगी से किया गया, ऐसा कहा है ।
नियुक्ति के आधार पर चौदह पूर्व अथवा द्वादशांगी इन दोनों श्रुत में से अथवा किसी एक से भी दशवकालिक का निर्गुहण माना जाय तो भी सूत्र रूप से इसके गुम्फन का श्रेय गणधर भगवन्तों को तथा अर्थरूप से उपदेशक अरिहन्त भगवन्त को जाता है। ___ महावीर के चौथे पट्टधर शय्यंभवसूरि चतुर्दश पूर्वधर थे। उन्होंने तृतीय पट्टधर प्रभवसूरि के पास चौदह पूर्व का ज्ञान प्राप्त किया था। श्रुतधर परम्परा में वे द्वितीय श्रुतधर थे। वीर निर्वाण संवत् ६४ में उन्होंने दीक्षा ग्रहण की। उसके ८ वर्ष पश्चात् इसकी रचना की थी। परिशिष्ट पर्व में उल्लिखित है कि दशपूर्वी विशेष परिस्थिति में ही पूर्वो से आगम-निर्ग्रहण का कार्य करते हैं। चतुर्दश पूर्वधर शय्यंभव १. आयप्पवायपुव्वा निज्जढा होइ धम्मपन्नत्ती ।
कम्मप्पवायपुव्वा पिंडस्स उ एसणा तिविहा ॥ सच्चप्पवायपुव्वा निज्जूढा होइ वक्कसुद्धी उ । अवसेसा निज्जूढा नवमस्स उ तइयवत्युओ।
___ दशवै० नियुक्ति, गा० १६-१७ २. बीओऽवि आएसो गणि पिडगाओ दुवालसंगाओ।
एउनं किर निज्जढं मणगस्स अणुग्गहट्ठाए ॥ वही, गा० १८ ३. विशेषावश्यक भाष्य, गा० ११८१ ४. परिशिष्ट पर्व, सर्ग-५, गा० ८३
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