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________________ जैनसम्मत आत्मस्वरूप का अन्य भारतीय दर्शनों से तुलनात्मक विवेचन ४१ ब्रह्म या ईश्वर का अंश नहीं हैं। सभी जीवों का (स्वरूपगत समानता होते हुए भी) स्वतन्त्र अस्तित्व है । जैन दर्शन में जीवों पर किसी परमात्मा का नियन्त्रण नहीं है। मुक्त होकर अर्थात् अपने यथार्थ स्वरूप को पाकर सभी जीव परमात्मा हो जाते हैं।' सिद्ध जीव ही पूज्य हैं एवं कर्ममुक्त होने पर आत्मा स्वयंभू हो जाता है। यही उसका ईश्वरत्व या दिव्यत्व ( अनन्त ज्ञान, दर्शन एवं वीर्य की प्राप्ति) है। अद्वैत वेदान्त में आत्मा को नित्य, निरुपाधिक, एक, निरवयव एवं व्यापक कहा गया है। परन्तु संसार दशा में जीव रूप होकर यही अनित्य, सोपाधिक, अनेक, सावयव, मन-बुद्धि-अहंकारवश प्रत्येक देह में ही व्याप्त माना गया है। इसे व्यक्तिगत चैतन्य भी कहते हैं क्योंकि एक सर्वव्यापी चैतन्य प्रतिशरीर में अंशरूपेण रहता है । जैनसम्मत आत्मा की ( अनेकत्व को छोड़कर ) वेदान्त के आत्मसिद्धान्त से समानता दिखायी देती है। जैन दर्शन निश्चयनय से आत्मा को नित्य, अमूर्त, निरुपाधिक, ज्ञानरूप होने से व्यापक इत्यादि कहता है और संसार दशा में इसी आत्मा को सोपाधिक (कर्मपुद्गलों से सम्बद्ध ), अनित्य, देहपरिमाणी आदि शब्दों से सम्बोधित करता है। जैन दार्शनिकों ने जीवों एवं जड़ पदार्थों की पृथक-पृथक् सत्ता स्वीकार कर ( न्याय, वैशेषिक एवं मीमांसा के समान ) यथार्थ एवं आदर्श दोनों की मर्यादा रखी है। सांख्य के पुरुष से जैनसम्मत आत्मा की तुलना की जा सकती है लेकिन यहाँ भी पर्याप्त मत-वैषम्य प्रतीत होता है। जैनों का आत्मा द्रव्य, सांख्य एवं वेदान्त के आत्मा के समान सर्वदा मुक्त नहीं है। न ही जैन “योग-दर्शन' की तरह अनादि युक्त एक परमात्मा के १. यः परमात्मा स एवाऽहं योऽहं स परमस्ततः । अहमेव मयोपास्यो नान्यः कश्चिदिति स्थितिः ॥ ---समाधिशतक, ३१ २. बृहदारण्यकोपनिषद्, ३।४।१, प्रश्नभाष्य-६।२ ( शङ्करकृत ) ऐतरेय भाष्य, २११ ३. वेदान्तसार (सदानन्द) ४. बृहद्रव्यसंग्रह गाथा-६, ८, ९ और १३ ५. सांख्यप्रवचनभाष्य-१७२, सांख्यसूत्र-३१६५, हस्तामलक स्तोत्र-१० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525007
Book TitleSramana 1991 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1991
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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