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________________ श्रमण, जुलाई-सितम्बर, १९९१ गुण स्वीकार करते हैं। इसके विपरीत सांख्य, योग और अद्वैत वेदान्त ने आत्मा को निर्गुण कहा है। भारतीय दर्शनों में आत्मा का चैतन्य से सम्बन्ध, (नित्य या संयोग), नित्यता, परिमाण, कर्तृत्व, भोक्तृत्व, अनेकत्व, एकत्व एवं इसकी मोक्ष-स्थिति के विषय में पर्याप्त भिन्नता दृष्टिगोचर होती है। प्रस्तुत लेख में आत्मा के विषय में जैन दर्शन एवं अन्य भारतीय दर्शनों की तुलना करते हुए जैन दर्शन की समन्वयात्मकता एवं वैशिष्ट्य पर प्रकाश डालने का प्रयास किया गया है। चार्वाकों समेत सभी दार्शनिकों ने आत्मा को चैतन्य से सम्बद्ध स्वीकार किया है।' न्याय, वैशेषिक एवं मीमांसा के अनुसार चैतन्य आत्मा से पृथक् हो सकता है, अर्थात् मोक्षावस्था में जीव चैतन्य रहित हो जाता है। जैन दर्शन न्यायादि के समान ज्ञान को आकस्मिक गुण नहीं मानता। वह न्यायादि की तरह ज्ञान को आत्मा का गुण तो मानता है किन्तु ऐसा गुण जो आत्मा से किसी भी दशा में विमुक्त नहीं हो सकता है क्योंकि चैतन्य जीव का अनिवार्य लक्षण है। एक तरह से जैनसम्मत आत्मा ज्ञानस्वरूप ही है। आत्मा ज्ञान रूप होने से ज्ञान प्रमाण है एवं ज्ञान समस्त ज्ञेयों को जानने के कारण ज्ञेयप्रमाण है। समस्त लोकालोक के ज्ञेय होने से ज्ञान सर्वगत हो जाता है। न्याय, वैशेषिक एवं मीमांसा दर्शन में स्वीकृत आत्मा द्रव्य से अनेकत्व एवं द्रव्यवाद के कारण जैनसम्मत आत्मतत्त्व के समान प्रतीत होती है किन्तु ज्ञान गुण से इनमें स्पष्ट भेद हो जाता है। जैनसम्मत आत्मा न्यायादि की तरह ज्ञान गुण से पृथक् नहीं हो सकता है फिर भी ये बौद्धों के समान जीव और ज्ञान को एकरूप नहीं कहते हैं। अन्यथा ये ज्ञान को ही जीव कह देते। ये सांख्य एवं अद्वैत वेदान्त के समान ज्ञान को (एक प्रकार से ) आत्मा का स्वरूप ही मानते हैं । साथ ही सांख्य महत् (बुद्धि)को प्रकृति का विकार मानता है १. चैतन्यविशिष्ट: कायः पुरुषः---चार्वाक सूत्र २. न्यायमञ्जरी, पृ० ७७ (मुक्तात्मा के स्वरूप से सम्बद्ध श्लोक) भारतीय दर्शन बलदेव उपाध्याय, पृ० ५८८ में उद्धृत ३. चैतन्यलक्षणो जीवः । ---षड्दर्शन समुच्चय, कारिका ४९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525007
Book TitleSramana 1991 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1991
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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