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उपकेशगच्छ का संक्षिप्त इतिहास
-में इनके पठनार्थ उत्तराध्ययनसूत्र
__ सुखवोधावृत्ति की प्रतिलिपि की गयी] यद्यपि इस प्रशस्ति से उपकेशगच्छीय सिद्धाचार्यसंतानीय दो मुनिजनों के नाम ही ज्ञात होते हैं, फिर भी उपकेशगच्छ की उक्त शाखा के इतिहास की दृष्टि से यह प्रशस्ति अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।। ____ अजापुत्रचौपाई' यह उपकेशगच्छीय सिद्धाचार्यसंतानीय मुनि धर्मरुचि द्वारा मरु-गुर्जर भाषा में वि० सं० १५६१ में रची गयी है। रचना के अन्त में मुनि धर्मरुचि ने अपनी गुरुपरम्परा का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है
सिद्धसूरि
कक्कसूरि
देवगुप्तसूरि
सिद्धाचार्यसंतानीय
कक्कसूरि
धर्महंस
१. संवत पन्नर वरस अकसठ्ठि, वैशाख पंचमी शुदि गुरुहिं गरिठ्ठा ।
नक्षत्र मृगशिर योग सकर्मा, कीधी चउपई दिन जाणी ॥३४॥ उवअसगच्छ तणा शगार, सिद्धसूरि गुरु लब्धिभंडार । सद्दगुरु नामइ गच्छ संतान, वंदिइ भवियण महिमानिधान ॥३५॥
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